शाकुंभरी देवी मंदिर || Mata Shakumbhari Devi :->जिला मुख्यालय सहारनपुर में 45 किलोमीटर की दूरी पर वेट विधानसभा के अंतर्गत शिवालिक की पर्वत मालाओं में यह प्रसिद्ध सिद्ध पीठ स्थापित है| शाकुंभरी देवी का नाम तीनों लोकों में विख्यात है| यहां दूर-दूर के हजारों यात्री भगवती के दर्शनार्थ एकत्रित होते हैं|
शाकुंभरी देवी मंदिर|Mata Shakumbhari Devi
शाकुंभरी देवी की उत्पत्ति के संबंध में बताया गया है कि दुर्गम नाम का एक पराक्रमी दैत्य था |उसने ब्रह्मा जी से वरदान में चारों वेदों की प्राप्ति की ओर यह भी वर मांगा कि उसे युद्ध में कोई भी देवता ना जीत सके।
इसके बाद वह धरती पर उपद्रव करने लगा उसने इंदर को भी परास्त कर दिया |जिससे पृथ्वी पर 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई| क्योंकि इंद्र देवता दुर्गम के अधीन हो गए थे |लगातार 100 वर्षों तक पृथ्वी पर जल वर्ष ना होने से समस्त जीवो में हाहाकार मच गया| धन-धान्य सब सूख गए |पेड़ पौधे प्रणाली से पृथ्वी रहित हो गई|
भूख और प्यास से व्याकुल होकर सभी जीव मरने लगे| इस संकट को देखकर देवता गन महादेवी की शरण में आए और कहने लगे कि आप इस संकट में हमें मुक्ति दिलवा दे? इस प्रकार प्रजा को दुखी देखकर देवी ने अपने नेत्रों को दया के जल से भर लिया और सो नेत्रों से देखा जिससे जल की हजारों धाराएं निकलने लगे |और सब कुछ हरा भरा हो गया| नदीया, तालाब, समुंद्र आदि जल से परिपूर्ण हो गई जिससे भूख और प्यास से तड़प रहे जीवो का जीवन को नव जीवन प्राप्त हुआ।
एक सौ नेत्रों से देखने के कारण देवताओं ने इस देवी का नाम शताक्षी रखा |जब सारे संसार में वर्षा नहीं हुई तो शताक्षी देवी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक (सब्जी) द्वारा संसार का पालन किया| जिससे यह शाकुंभरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई| शाकुंभरी देवी को शार्क की अधिष्ठात्री देवी पुराणों में कहा गया है| कहा जाता है कि यदि किसी वक्त को कोई परेशानी आती है तो वह 1रुपया और एक नारियल मां शाकुंभरी के नाम से उठाकर रख दे| और देवी से कहे कि मेरी इच्छा पूर्ण कर दें, तो माँ उसकी सारी परेशानी दूर कर देती है गर्भ गृह में स्थापित देवी की प्रतिमा का रंग नीला है।,
आंखें नीली है ¢देवी का वाहन कमल है |प्रतिमा लगभग 4 फीट की है |देवी की प्रतिमा के दाएं और बीमा और बभ्रामरी तथा बाएं और शताक्षी प्रतिशिष्ट है। प्रतिमाओं के ऊपर चांदी का छत्र लगा हुआ तथा प्रतिमाए लाल वस्त्र धारण किए हुए हैं |इस देवी का उल्लेख दुर्गा सप्तशती के अंत में मूर्ति रहस्य में मिलता है।
मंदिर का शिखर 20 फीट ऊंचा है| संपूर्ण मंदिर सफेद रंगों में है |मंदिर के शिखर पर लाल पताका फहरा रही है |यहां पर देवी के दर्शन के बाद कढ़ी चावल खाने की प्रथा है |यहां पर अस्थाई दुकानें में कढ़ी चावल हमेशा उपलब्ध रहते हैं| जो प्राणी माता शाकुंभरी देवी की नित्य स्नानआदि से निवृत होकर सच्चे एवं शुद्ध हृदय से पूजा करता है, माँ पर प्रसन्न होकर उसे धनधान्य से पूर्ण करती है।
मंदिर के चारों और पहाड़ है| रास्ते में पहाड़ से पानी अचानक नीचे आ जाता है |जो कभी कभी भी तुम रूप ले लेता है |नवरात्रि में मेला लगता है |मेले में इतनी भीड़ रहती है कि बहुत से लोग दर्शनों से वंचित रह जाते हैं| यह मंदिर राणा परिवार द्वारा संचालित किया जाता है |
प्रतिवर्ष यहां आसीवन शुक्ल चतुर्दशी को एक मेला लगता है| मंदिर में फल-फूल एव प्रसाद की 20 दुकानें स्थाई तथा 35 अस्थाई दुकानें हैं| यह पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है |मंदिर में दो पुजारी तथा 30 कर्मचारी है |प्रतिदिन 1000 से 1200 गत, रविवार को 2500,दोनों नवरात्रि दुर्गा अष्टमी में पांच से छह लाख भकत माता के दर्शन करते हैं।
यहां शाकुंभरी देवी के नाम से एक संस्कृत महाविद्यालय स्थापित है |मंदिर का क्षेत्रफल 6000 मीटर है| प्रतिवर्ष 12 से 15 लाख भक़्त दर्शन करते हैं।