श्री वैष्णो देवी मंदिर :->वैष्णो देवी का मंदिर जम्मू से किलोमीटर दूर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है गुफा की महतया है की यहां शक्ति की तीन रुपों की प्रतीक तीन मूर्तियां में विराजमान है| यह तीन शक्तियां है -महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली।
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श्री वैष्णो देवी मंदिर | Shree Vaishnu Devi Mandir
माता वैष्णो देवी के मंदिर की महत्ता देश के सब मंदिरों की अपेक्षा अधिक है| यह मंदिर शक्ति पंथ से संबंधित है| आदिशक्ति का दूसरा नाम माता वैष्णो जिनका अवतारण असुरों के वध के लिए देवताओं की सामूहिक शक्ति के सम्मिलित रूप में हुआ।
कुछ समय तक माता वैष्णो देवी आदि कुमारी स्थान पर रही इसके बाद महिषासुर का वध करने के बाद वर्तमान गुफा में आकर तप करने लगी। देवी ने शवेत रक्त और श्याम वर्ण से आभायुकत तीन पिंडियो का निर्माण किया।
ब्रह्मा के अंश से महासरस्वती, विष्णु के अंश से महालक्ष्मी तथा शिव के अंश से महाकाली कहलाई | गुफा में स्थापित तीन पिंडिया देवी के इन तीन रूपों की प्रतीक है। एक ही शक्ति के यह तीन अलग-अलग रूप है और इनका समलित नाम कहलाया वैष्णवी।
मुंह मांगी मुरादे :-
मुंह मांगी मुरादे ” देने वाली माता वैष्णो देवी जम्मू कश्मीर राज्य में त्रिकूट पर्वत की सुंदर गुफा के भीतर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती की तीन भव्य पिंडियो के रूप में विराजमान है। जहां प्रतिवर्ष 1 करोड से अधिक संख्या में यात्री दर्शन करके मनोकामना पूर्ण करते हैं ऐसी मान्यता है कि यहां पर सती की एक बाजू गिरी थी परंतु पुराणों में इसका उल्लेख नहीं है।
श्रीधर जी की सच्ची उपासना:-
कटरा से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर हंसाली ग्राम है| कहा जाता है कि लगभग 700 वर्ष पूर्व माता के परम भक्त श्री धर हुए थे जो pass ग्राम के निवासी थे वे नित्य नियम से कन्या पूजन करते थे संतान ना होने के कारण वह दुखी रहा करते थे | श्रीधर जी की सच्ची उपासना और दृढ़ विश्वास देखकर मां वैष्णो को सुबह एक दिन कन्या रूप धारण कर आना पड़ा।
भगत जी कन्या पूजन की तैयारी कर रहे थे | छोटी-छोटी कन्याएं उपस्थिति थी |उन्हीं में जगत माता भी कन्या बनकर आ गई| नियम के अनुसार पांव धोकर भोजन करते समय श्री धर की दृष्टि उस महान दिव्य रूप कन्या पर पड़ी |भगत जी विस्मय में डूब गए क्योंकि वह कन्या उन्होंने कभी ना देखी थी और ना ही उनके गांव की प्रतीत होती थी|
अन्य कन्याए तो दक्षिणा लेने पर चली गई पर वह दिव्य कन्या वहीं बैठी रही |कन्या के आदेश पर श्रीधर ने दूसरे दिन विशाल भंडारे का आयोजन किया | भंडारे के बाद कन्या अदृश्य हो गई | उधर भगत श्रीधर को कन्या के अचानक चले जाने से अत्यधिक बेचैनी थी |
उन्होंने खाना-पीना भी त्याग दिया था परंतु माता तो अपने भक्तों के दिलों को जानती थी अंत एक रात स्वपन में वैष्णो मां ने श्रीधर को दर्शन दिए और अपने धाम का दर्शन भी कराया | स्वपन में ही भगत जी ने माता के साथ संपूर्ण यात्रा की | प्रात काल श्रीधर जी उठे तो बहुत प्रसन्न थे | स्वपन में देखे हुए स्थानों से उनका हृदय अब तक पुलकित था।
उसी दिन से पंडित जी वैष्णो देवी के साक्षात दरबार की खोज करने लगे | एक दिन स्वपन में देखे अनुसार चलते चलते गुफा का द्वार देख लिया और उसमें प्रवेश करके माता के दरबार के साक्षात दर्शन करके जीवन सफल बना लिया|
श्रीधर जी ने हाथ जोड़कर जगदंबे की आराधना की | माता ने उन्हें चार पुत्रों का वरदान दिया और कहा कि तुम्हारा वंश मेरी पूजा करता रहेगा सुख शांति की प्राप्ति होगी|
इस लिए आज तक पूरी का वंश मां की पूजा करता आ रहा है इसके बाद श्री धर ने गुफा का प्रचार किया | भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती रही| प्रचार बढ़ता रहा |हजारों लाखों वक्त प्रति वर्ष मां के दर्शन के लिए आने लगे और वैष्णो देवी नाम से तीर्थ प्रसिद्ध हो गया।
श्री वैष्णो देवी मंदिर जाने का रास्ता :-
वैष्णो देवी जाने के लिए यात्री कटरा से अपनी प्रथम यात्रा दर्शनी दरवाजा से प्राप्त करता है | चढ़ाई चढ़ने का कुल मार्ग 14 किलोमीटर का है | जिसे सीढियो तथा घुमावदार रास्तों से पार किया जाता है रास्ते में पेयजल की व्यवस्था, विश्राम स्थल, शौचालय आदि की व्यवस्था श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा की जाती है |
रास्ते में बरसात एव धूप से बचने के लिए छाजन लगाकर मार्ग को सुविधाजनक बनाया जा रहा है | पंजीकृत पिठू, घोड़े अथवा डांडी की सेवा लेने के पूर्व उनका टोकन अपने पास रखना चाहिए | यात्रा निश्चित मार्ग से ही पूरी करनी चाहिए अन्यथा छोटा मार्ग पहाड़ी होने के कारण घातक हो सकता है | ।