चंडिका स्थान मंदिर :->दानवीर कर्ण की कर्मभूमि, ऋषि मुद्गगल का तपोवन, विश्व का प्रथम योग विश्वविद्यालय मुंगेर एक ऐतिहासिक नगरी है |मुंगेर दुर्ग से पूर्व दिशा में लगभग 2 किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे विद्या पर्वत श्रंखला में अवस्थित मां चंडिका का प्राचीन मंदिर है|
चंडिका स्थान मंदिर |Chandika Sthan Temple
कथा इस प्रकार है कि सती की मृत्यु का समाचार सुनकर शिव विचलित हो उठे और दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने के बाद उन्होंने सती के शव को अपने कंधों पर उठा लिया| और विक्षिप्त होकर तांडव नृत्य करने लगे| शिव की इस आशिक और सती को मृत शरीर से मुक्त करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शनि सती के उस मृत शरीर में योग बल से प्रवेश कर टुकड़ों में गिराने लगे।
जहां-जहां सती के पार्थिव शरीर के अंग कट कट कर गिर रहे थे |वह स्थान शक्तिपीठ बन गए |ऐसी धारणा है कि यहां देवी का एक नेत्र गिरा था |अंत मुंगेर के इस शक्तिपीठ में नेत्र न्यास है| परंतु पुराणों में इसका वर्णन नहीं है |इस शक्तिपीठ के महत्त्व में वर्णन में कर्ण कथा का भी उल्लेख है |राजा कर्ण भगवती चंडी के एकनिष्ठा उपासक थे एवं देश के शक्तिशाली राजा थे|
उनकी दानवीरता की चर्चा दूर-दूर तक थी| वह हर रात चंडी मंदिर में जाते और वहां खोलते हुए घी के एक कड़ाही में कूद पड़ते थे |वहां वह नियम से पूजा पाठ कर मां चंडी का आहवान करते थे | राजा कर्ण की दानशीलता एव असीम भक्ति से प्रसन्न होकर मां चंडी प्रगट होकर मांसहीन असिथ पंजर पर जल छिड़क कर पुण्य जीवन प्रदान करती थी |
देवी मां के प्रसाद के रूप में राजा कर्ण को सवा मन सोना प्राप्त होता था जिससे राजा प्रतिदिन अपने राज्य के दिन दुखी एक जरूरतमंदों को दान किया करते थे।
यह शक्तिपीठ मुंगेर नगर से 2 किलोमीटर गंगा तट के किनारे पर स्थापित है |धारणा है कि मैं यहां मां के नेत्र गिरे थे |मंदिर का क्षेत्रफल 2 बीघा है| पूजा के समय भीड़ को नियंत्रित करते हैंतू तीन मजिस्ट्रेट लगाए जाते हैं|
मंदिर के बाहर फूल प्रसाद की 30 -40 दुकानें हर समय लगी रहती हैं |मां चंडिका कर्ण की आराध्य देवी थी |लोगों का विश्वास है कि संभवत कर्ण ने इसकी मूल स्थापना की थी| 1964 में सीमित द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया है|
प्रतिदिन एक हजार तथा मंगलवार को लगभग 10,000 भकत दर्शन करते हैं |दोनों रात्रि में कई लाख भकत पूजन दर्शन करते हैं |वर्ष में 15 से 16 लाख भकत दर्शन करते हुए।