श्री माता भद्रकाली मंदिर :-> बागेशवर जनपद में विजयपुर नामक स्थान से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस शक्तिपीठ की कथा भी कनखल में महाराज दक्ष द्वारा आयोजित उसी यज्ञ से जुड़ी है।
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श्री माता भद्रकाली मंदिर | Shree Mata Bhadrakali Temple
जिसमें अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न कर सती ने यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था |कहते हैं कि दक्ष का यज्ञ विध्वंस होने के उपरांत भगवती सती के चरण भद्रकाली नामक स्थान पर गिरे थे| इसलिए यहां सर्वप्रथम देवी के चरणों की पूजा की जाती है| यहां शक्ति के तीनो चरित् महाकाली, महासरस्वती आदिशक्ति के रूप में प्रकट है।
मानस खंड में भी भद्रकाली के महातम्य:-
मानस खंड में भी भद्रकाली के महातम्य का वर्णन मिलता है| मंदिर के पीछे भद्रा नाम की नदी बहती है जो मंदिर के ठीक नीचे भूमिगत होकर गुफा में चली जाती है |यह गुफा मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने करीब 300 मीटर आगे जाकर खुलती है| गुफा में प्रवेश के लिए स्थानीय लोग लकड़ी से बनी मशाल लेकर जाते हैं।
इस समशक्तिपीठ के पास गोपेशवर शिव मंदिर बागेश्वर जिले के कांडा बाजार से 8 किलोमीटर दूर स्थापित है। किवदंती के अनुसार जब पांडव अज्ञातवास में इस क्षेत्र में थे तब श्री कृष्ण इस क्षेत्र में आए और उन्होंने इस शिवलिंग की स्थापना की| श्री कृष्ण के वियोग में व्याकुल गोपियों ने इसी स्थान पर शिव की तपस्या की थी।
भद्रवती नदी के तट पर काफी नदी के संगम पर भगवान ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उनके साथ श्री कृष्ण भगवान भी थे उसी समय यह सव्यभू सव्य प्रकट हुआ और गोपियों ने इस मंदिर की एक रात्रि में स्थापना की| कुछ लोगों का कहना है कि कृष्ण भगवान ने इसकी स्थापना की |शिव भगवान के स्वपन पर नेपाल के राजा ने इसका जीर्णोद्धार किया तभी से अब तक कई बार इसका ज होता रहा।
गर्भ ग्रह में 6 इंच ऊंचा, डेढ़ फीट गिरे वाला शिवलिंग स्थापित है| शिवरात्रि, सावन, वैशाखी में मेले लगते हैं| मंदिर तक पहुंचने के लिए डेढ़ सौ सीढ़ियां चढ़ने पड़ती है| प्रतिवर्ष लगभग 3 से 4लाख भगत दर्शन करते हैं।