श्री मनसा देवी मंदिर :->श्री मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर भारत के प्रमुख नगर चंडीगढ़ के समीप मनीमाजरा नामक स्थान पर है। मनसा देवी का यह स्थान प्रमुख सिद्धपीठ माना गया है यहां पर सती का मस्तक गिरा था परंतु पुराणों में इसका उल्लेख नहीं है |चैत्र के नवरात्र में बहुत भारी मेला लगता है| इस अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन करते हैं| मनीमाजरा जाने के लिए चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बसे आराम से मिल जाती है।
श्री मनसा देवी मंदिर| Shree Mansa Devi Mandir
मुगल सम्राट अकबर के समय की बात है कि चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा नामक स्थान पर एक राजपूत जागीरदार के अधीन जागीर थी |अकबर सम्राट जागीरदारों वह कृषकों से लगान के रूप में वसूल करता था |
एक बार प्रकृति के प्रकोपवर्ष फसल बहुत कम हुई |जिससे राजपूत जागीरदार वसूली देने में असमर्थ रहे| इसलिए उन्होंने अकबर से लगान माफ करने की प्रार्थना की |परंतु अकबर ने उन जागीरदारों की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और क्रोधित होकर उन सब जागीरदारों को कैद करवा लिया?
जागीरदारों के इस प्रकार गिरफ्तार हो जाने का समाचार शीघ्र चारों तरफ फैल गया। तब देवी के एक भकत कवि गरीब दास ने दुर्गाजी की पूजा और हवन का आयोजन किया |
देवी माता प्रसन्न हुई और प्रकट होकर उससे बोली “तुम्हारी क्या इच्छा है” इस पर कभी गरीब दास ने कहा मां आप कृपया कर उन निर्दोष जागीरदारों को अपनी कृपा से मुक्त करवा दो|”
माता ने प्रसन्न होकर गरीबदास को आशीर्वाद दिया और अंतधारण हो गई| माता की कृपा से सभी जागीरदार मुकदमा जीत गए और काजी द्वारा उस वर्ष का लगान स्थगित कर दिया गया| सब जागीरदार प्रस्ननचित जब अपने अपने घरों को वापस लौटे तो उन्हें सारी बात का और देवी के प्रकट होने का पता चला।
तब उन सब ने मिलकर ही यहां एक मंदिर बनवा दिया जो कि मनसा देवी अर्थात मनसा को पूर्ण करने वाली देवी के नाम से विख्यात हुआ| जब वह मंदिर स्थापित हो गया तो 1 दिन महाराजा पटियाला को स्वपन में देवी ने दर्शन देकर कहा कि मैं मनी माजरा नामक स्थान पर प्रकट हुई हूं इसलिए तुम एक मंदिर वहां भी बनवा कर पुण्य लाभ अर्जित करो महाराजा पटियाला ने तुरंत देवी की आज्ञा का पालन किया और विशाल मंदिर बनवा दिया।
मनसा देवी के तीन मंदिर :-
इस समय मनसा देवी के तीन मंदिर इसी स्थान पर है| मध्य का मंदिर सबसे बड़ा एव प्राचीन है| पटियाला के महाराजा द्वारा मंदिर का निर्माण 1840 में हुआ| प्राचीन मंदिर के पीछे मनसा देवी का तीसरा मंदिर है जिसे सती का मंदिर कहते हैं।
कहते हैं कि द्वापर युग में जब पांडव वनवास के दिनों में उत्तराखंड की यात्रा पर आए तो अपने आवास के दौरान उन्होंने अन्य शक्तिपीठों के साथ चंडीगढ़ के निकट चंडी मंदिर, कालका में काली माता तथा मनसा देवी मंदिर में देवी की आराधना की थी।
श्री मनसा देवी मंदिर की सुबीदा:-
इस शक्तिपीठ में दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए बोर्ड द्वारा दो भंडारों का लगातार आयोजन किया जा रहा है| इन भंडारों में हजारों यात्री प्रतिदिन भोजन ग्रहण करते हैं| बोर्ड द्वारा दो धर्मशालाओं का संचालन भी किया जा रहा है |पर्यटन विभाग की ओर से एक सुंदर यात्री निवास बनाने की योजना है |
इस प्रकार इस स्थान पर 2000 यात्रियों के प्रतिदिन आवास की सुविधाएं उपलब्ध है मनसा देवी के मुख्य मंदिर के प्रांगण में हरियाणा के मुख्यमंत्री ने 9 अक्टूबर 1999 को माताजी की अखंड ज्योति प्रज्वलित की थी जिसमें देसी घी का प्रयोग होता है माता मनसा देवी के 3 मंदिरों में प्रात एवं रात्रि को मेवे का भोग लगाया जाता है |
रात्रि को पान और सवारी का भोग लगाया जाता है| इस मंदिर भवन की परिक्रमा में नैना देवी, वैष्णो देवी, भैरव, काली माता, हनुमान एवं गणेश की मूर्तियां स्थापित की गई है।
गर्भ ग्रह में माता की मूर्ति :-
गर्भ ग्रह में माता की मूर्ति 2 फीट ऊंची है| वह स्वर्ण आसन पर विराजमान है| बाहर निकलने पर विशाल पीपल का वृक्ष है| जिसमें कई हजार चुनरी बंधी हुई है| अपनी मनोकामनाएं पूरी करने हेतु भगत चुनर बांधते हैं |गर्भ ग्रह के द्वार चांदी के पत्रों से युक्त है| पूजा भवन, यज्ञ भवन, सत्संग भवन, शिव मंदिर, सिद्ध बाबा बालक नाथ जी का मंदिर परिसर में स्थापित है।
लगभग 2 किलोमीटर के क्षेत्र में सुंदर पार्क बना हुआ है जिसको 20 माली सवारते सजाते हैं| यह विशाल वह भव्य मंदिर सरकार द्वारा गठित कमेटी द्वारा संचालित है |मंदिर को प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ करोड़ की आय होती है।
मंदिर का क्षेत्रफल 100 एकड़ है |पुजारी अधिकारी 35 एव 47 कर्मचारी कार्यरत है |फल -फूल एव प्रसाद की डेढ़ सौ दुकानें हैं| प्रतिदिन 7 से 8 हजार, शनिवार -रविवार 10 से15 हजार, दोनों नवरात्रि में 16 लाख, प्रति वर्ष लगभग 45 से 50 लाख भगत दर्शन करते हैं।