कबीर अमृतवाणी | kabir amritwani:—>कबीर अमृतवाणी जनि कबीर दोहे पड़ेह दूर और अपने भक्ति मार्ग और जीवन मार्ग क़ो उज्वल बनाये कबीर दास जी का जन्म 13 सदी में हुआ था यह कवि और संत दोनों के नाम से जाने गए है
कबीर अमृतवाणी | kabir amritwani
गुरु गोबिंद दोह खड़ेकाके लगो पाए
बलिहारी गुरु अपने गोबिंद दियो बताया
ऐसे वाणी बोलिएमन का आपा खोये
औरन को शीतल करेअपुन शीतल होये
बढ़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं,फल लगे अति दूर ।
निंदक नियरे राखिए,ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय।
दुःख में सुमिरन सब करेसुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
माटी कहै कुम्हार सो,क्या तू रौंदे मोहि
एक दिन ऐसा होयगा,मै रौंदूँगी तोहि
मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर ।
तेरा तुझकौं सौंपता,क्या लागै है मोर ॥1॥
काल करे सो आज कर,आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिये ज्ञान,।
मोल करो तरवार का,पड़ा रहन दो म्यान ॥
नहाये धोये क्या हुआ,जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे,धोये बास न जाए ।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय ।।
साँई इतना दीजिए,जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ,साधु न भूखा जाय।।
माखी गुड में गडी रहे,पंख रहे लिपटाए ।
हाथ मेल और सर धुनें,लालच बुरी बलाय ।
कबीर अमृतवाणी kabir amritwani