कबीर दास का जीवनी | Kabir Das biography :—>कबीर जी 15 सदी के के भारतीय मूल के संत अथवा कवि था | इनके बताये हुए भक्ति के पथ पर लोग आज व चलते है |इनका बताया हुए रास्ता भक्ति के आडंबरो से बिलकुल दूर है और इनके बताये हुआ रस्ते पे चल कर भक्त की आत्मा का परमात्मा से मिलन बिलकुल तेह है |
कबीर दास जी के शुरुआती दिन के मुलिम परिवार में व्तीत हुआ | लेकिन वह अपने हिन्दू गुरु रामानन्दान जी से बहुत प्रभावित थे | कबीर जी एक ऐसे संत और कबि था जिसके हिन्दू अथवा मुस्लिम धर्म के लोग आलोचक थे |
क्योकि कबीर जी सदैव ने धर्मो में होने वाले आडंबरो और अर्थहीन प्रथाो के खिलाफ आवाज उठाते था |कबीर दास जी नेह हिन्दू और मुस्लिम दोनों को प्रभु से मिलने के बहुत सरल रस्ते बताये |इनके जीवन काल में बहुत सी धमकिया व बहुत दी गई थी लेकिन कबीर जी भक्ति के मार्ग पर होना वाले आडंबरो पर आवाज उठाते रहे |
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कबीर दस् जी का प्रारंभिक जीवन
कबीर दास जी का जन्म काशी वाराणसी में हुआ था उह्नोने अपने जीवन काल के शुरुआती दिन वहां ही व्तीत किये |कबीर जी का के जन्म और मृत्यु का समां स्पष्ट नहीं है | लेकिन फिर व कुछ इतिहासकार के हिसाब से कबीर जी का अपना पूरा जीवन काल 1398 और 1448 ई० व्तीत हुआ |
कबीर जी के जीवन के बारे में अलग अलग धारणाये है जैसे की एक संस्करण के अनुसार. कि वह जगत गुरु रामानंद स्वामी जी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे और जिस ब्राह्मणी के गर्व सेकबीर जी ने जन्म लिया था | उस ब्राह्मणी ने कबीर जी को एक टोकरी में बिठाकर एक लहरतारा ताल के पास छोड़ आई थी |
बस वहां से एक निरु नमक जलाहा अपने साथ ले गया था | उस व्यक्ति और उसकी नीमा नमक पत्नी ने कबीर जी का पालन पोषण किया था |हालांकि, आधुनिक विद्वता ने ऐतिहासिक साक्ष्य की कमी के कारण इन किंवदंतियों को त्याग दिया है, और कबीर को व्यापक रूप से मुस्लिम बुनकरों के परिवार में जन्म और पालन-पोषण माना जाता है। इस तरह यह स्पस्ट होता है की कबीर जी का जन्म और मृत्यु के बारे में स्पस्ट किसी को नहीं पता |
कबीर दास का जन्म स्थान | Kabir Das Birthplace
मान्यता हिअ की संत कबीर दास जी का जन्म मगहर,काशी(वाराणसी ) में हुआ था | मगहर आजकल वाराणसी के पास स्तिथ है ऐसा कबीर जी ने अपने लिखे हुए प्रसंग में स्पष्ट किया है अज्ज मगहर में आज भी कबीर जी का मकबरा है |
कबीर दास जी की शिक्षा | kabir Das Education
कबीर दास जी अपने जीवन काल में विदया प्राप्त नहीं क्र पाए क्युकी कबीर जी के पिता बहुत निर्धन थे उनके पास खाने के पैसे व् नहीं जुड़ ते थे | तो ऐसे में असम्भव था की वह कबीर जी किया शिक्षा के बारे में सोच सके निरु जी के पास तो मदरसे तक भेजना के लिया भी धन नहीं था | पर्याप्त धन न होने की वजह से कबीर जी शिक्षा से वंचित रह गए |
कबीर जी बेशक बिद्या प्राप्त नै कर पाए लेकिन उन पर प्रभु की विशेष कृपा होना के कारन उह्नो ने बहुत से प्रसिद्ध रचनाये लिखी जिसका कोई जिसको पढ़ने मात्र से बड़े बड़े से ज्ञानी और अज्ञानी ज्ञान चक्षु खोल दे | संत अथवा कवी कबीर जी की प्रसिद्ध रचना आगे पड़े |
कबीर दास जी की प्रसिद्ध रचनाये | kabir daas ki Rachnaye
कबीर दास जी की वैसे तोह बहुत से रचनाये है लेकिन उन में से कुछ प्रसिद्ध रचनाये है जिनके नाम आगे लिखे है
- सबद
- साखी
- रमैनी
- भक्ति के अंग,
- कबीर की वाणी,
- राम सार,
- उग्र गीता,
- अलिफ नाफा,
- कथनी,
- ज्ञान गुदड़ी,
- ज्ञान सागर,
- करम,
- चाणंक,
- राम सार,
- रेखता,
कबीर दास जी का वैवाहिक जीवन| kabir Das Marital life
कबीर दास का विवाह लोई जी के साथ हुआ था है | लोई जी बहुत धार्मिक विचारो वाले और पतिव्रता स्त्री थी | मान्यता है की माता लोई व् प्रभु के भजन में लगे रहते थी | लोई जी वनखेड़ी बैरागी की पालिता की कन्या थी |
कबीर दास जी का एक पुत्र अथवा एक पुत्री थी | पुत्र का नाम कमाल था और पुत्री नाम कमाली था | कबीर जी के बचे व् धर्म में अग्रसर था | कबीर जी के कबीर पंथ वालो की कुछ और व् धारणाये है उनका कहना है की कबीर जी बाल ब्रह्मचारी थे|
कबीर दास जी के आद्यात्मिक गुरु| Spirtual Guru of kabir das
कबीर दास जी के आद्यात्मिक गुरु का नाम पूजनीय रामनन्दन जी का था | रामानन्द जी के पास कबीरदास, राम नाम की दीक्षा लेने और उनका शिष्यत्व स्वीकार करने हेतु प्रार्थना करने गए लेकिन वैष्णव संत रामानंद जी ने मना कर दिया।
फिर कबीर दास प्रातः काल अंधेरे में रामानंदजी के गंगा स्नान के रास्ते में सीढ़ियों पर चुपचाप लेट गए और अंधेरे के कारण रामानंद जी उन्हें देख नही पाए और संत का पैर कबीरदास की छाती पर पड़ गया। संत राम रामम का उच्चारण करते हुए पूछा कि कौन सीढ़ियों पर सोया है, तब कबीर दास जी ने कहा कि अब तो आपने हमें राम नाम की दीक्षा देकर अपना शिष्य स्वीकार कर ही लिया, फिर वे रामानन्द के शिष्य बन गये।
कबीर दास जी के दोहे | kabir Das ke Dohe
वैसे तो तो कबीर जी के बहुत से दोहे उन में कुछ है जो आप आगे पढ़ सकते है | यह दोहे मन को सोचने के लिया मजबूर कर देता है की आप कहाँ खड़े है | यह कबीर जी के हज़ारो दोहे है लेकिन उन में से कुछ है आगे लिखे है |
गुरु गोबिंद दोह खड़ेकाके लगो पाए
बलिहारी गुरु अपने गोबिंद दियो बताया
ऐसे वाणी बोलिएमन का आपा खोये
औरन को शीतल करेअपुन शीतल होये
बढ़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं,फल लगे अति दूर ।
निंदक नियरे राखिए,ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना,निर्मल करे सुभाय।
दुःख में सुमिरन सब करेसुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
माटी कहै कुम्हार सो,क्या तू रौंदे मोहि
एक दिन ऐसा होयगा,मै रौंदूँगी तोहि
मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर ।
तेरा तुझकौं सौंपता,क्या लागै है मोर ॥1॥
काल करे सो आज कर,आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिये ज्ञान,।
मोल करो तरवार का,पड़ा रहन दो म्यान ॥
नहाये धोये क्या हुआ,जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे,धोये बास न जाए ।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय ।।
साँई इतना दीजिए,जामे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ,साधु न भूखा जाय।।
माखी गुड में गडी रहे,पंख रहे लिपटाए ।
हाथ मेल और सर धुनें,लालच बुरी बलाय ।
पड़े कबीर दास जी की जानकारी एक झलक में
नाम कबीर दास | ||||
जन्म 1398 ई० | ||||
पिता का नाम नीरू माता का नाम नीमा | ||||
पत्नी का नाम लोई | ||||
पुत्र का नाम कमाल | ||||
पुत्री का नाम कमाली | ||||
मृत्यु 1518 ई० | ||||
मुख्य रचनाएं साखी, सबद, रमैनी | ||||
मृत्यु स्थान मगहर (उत्तर प्रदेश) | ||||
कार्यक्षेत्र कवि, सूत काटकर कपड़ा बनाना |
निष्कर्ष :-
कबीर दास जी एक ऐसे संत थे जिह्नों ने समाज में से आडंबरो ,पाखंड और धर्म के नाम से सीधे साधो लोको जो बेवकूफ बनाते है उनका कड़ी निंदा एवेम विरोध किया और अपने बताये मार्ग दर्शन से बहुत स ज़िंदगिया क़ो नया जन्म दिया |
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