भगवान कहां रहते हैं | bhagwan kahan rehte hain:->प्राय : यह प्रश्न किया जाता है भगवान कौन है और यह भगवान कहां रहता है गीता में कृष्ण ने कहा है मन की आंखें खोल कर देख तू मुझे अपने भीतर ही पाएगा भगवान कण-कण में व्याप्त है
भगवान कहां रहते हैं | bhagwan kahan rehte hain
भगवान कौन है भगवान को किसने देखा है भगवान कब अस्तित्व में आया यह अनुत्तरित प्रश्न है
भगवान नाम कब प्रारंभ हुआ किसने यह नाम दिया |कोई नहीं जानता जाने का पर्यटन भी नहीं है| उत्तर खोजना है तो सृष्टि के प्रारंभ की ओर जाना होगा| जमानत धरती पर आया तो भाषा नहीं थी| समाज और परिवार भी नहीं था| खेत नहीं थे अनाज नहीं था वस्त्र नहीं थे पर पेट की भूख अवश्य थी| भूख शांत करने के लिए कंदमूल पशु पक्षियों का मांस जो मिला वही खाया|
अब सकता है उसे खाना किसने सिखाया? यह प्रकृति का वरदान है| धीरे-धीरे मानव का विकास हुआ होगा| बुद्धि के बल पर उसने अनेक प्रकार की संरचना की होगी| आदि मनुष्य के अनुभव किया होगा की जन्म और मृत्यु पर उसका अधिकार नहीं| दिन रात को भी नहीं रोक सकता रितु अभी कर्म अनुसार आती हैं इन सब क्रियाओं का जनक कौन है? कोई तो है पर वह दिखलाई नहीं देता इसलिए उसके रूप की कल्पना की जाने लगी जलसा निर्मल चांद सा उज्जवल सूर्य सरीखा महा प्रक्रम ई नदी वेगवान बादलों की गर्जना का आतंक फैलाने वाला आदि आदि|
इस क्रम में पूजा सेवा आराधना उपासना साधना प्रकाश में आए| अपनी आस्था जताने के लिए उसके लिए हवन किया इसका प्रमाण अवश्य मिलता है| हवन में आहुति देते समय आहुति किसी नाम के प्रति दी जाती है| आदिमानव भूतिया के समय कहता है किस देवता के नाम पर आहुति द|
शनै शनै बुद्धि और ज्ञान का विकास हुआ| बुद्धि और ज्ञान के साथ हम भी जागृत हो गया| आज का बुद्धिमान मनुष्य भगवान नाम का व्यापार कर रहा है| संवत वह स्वयं को अधिक शक्तिशाली समझने की दृश्यता में उड़ गया है पर प्रभु कभी जल बुलाया कभी भूचाल किसी न किसी रूप में मनुष्य को उसका छोटापन जतला देता है|
निष्कर्ष:-
गीता में कृष्ण ने कहा मन की आंखें खोल कर देख तू मुझे अपने भीतर पाएगा भगवान कण-कण में व्याप्त है भगवान हमारे भीतर ही विराजमान है के स्थान तो उसको याद दिलाने के चिन्ह मात्र हैं
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