Skip to content
Home » श्राद्ध का भार पुत्र पर क्यों?

श्राद्ध का भार पुत्र पर क्यों?

  • Festival

श्राद्ध का भार पुत्र पर क्यों? :-> संत उत्पादन से दशम द्वार से प्राण त्याग की शक्ति क्षीण हो जाती है आता पिता की इशानी का  दायित्व पुत्र पर है|  दाकर्म के समय पुत्र पिता की कपाल स्थित हो वहां से तीन बार स्पर्श करता हुआ अंत में तोड़ डालता है|

श्राद्ध का भार पुत्र पर क्यों?

जिसका अर्थ यही है कि पुत्र शमशान स्थान समस्त बंधुओं के सामने संकेत करता है| कि अगर पिता मुझ जैसे पावर जंतु को उत्पन्न करने का प्रयास ना करते तो ब्रह्मचारी केबल से उनके दशम द्वार से प्राण निकलते और वह मुक्त हो जाते हैं|

परंतु मेरे कारण उनकी शक्ति नष्ट हो गई है मैं तीन बार प्रतिज्ञा करता हूं कि इस कमी को  श्राद्ध आदि अर्क दैहिक वैदिक क्रियाओं द्वारा पूरी कर के पिताजी का अन्यवर्थ -“पुं”    नामक नरक से “त्र” ऋण करने वाला पुत्र बनूंगा वास्तव में शासन में पुत्र की परिभाषा करते हुए पुत्र तत्वों का आधार श्राद्ध कर्म को ही प्रकट किया गया है

जीवित माता-पिता आदि गुरुजनों की आज्ञा का पालन करने से और उनके प्रमुख जाने पर संस्कार भिंड बदल ब्रह्मभोज आधी तृप्त करने से तथा गया आदिति में जाकर पिंड दान करने से पुत्र होना सिद्ध होता है उक्त तीनों कार्यों का संपादन ही योग्य पुत्र तत्वों का सूचक है|

एक ही मार्ग है जिससे दो वस्तुएं उत्पन्न होती हैं एक पुत्र और दूसरा मूत्र| जो व्यक्ति उक्त तीनों कार्य करता है वही पुत्र है शेष सब मूत्र हैं|

Read Also- यह भी जानें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *