महामंत्र क्या है | What is Mahamantra :->द्वापरके अन्तमें नारदजी ब्रह्माजी के पास गये, और बोले – भगवन ! में भुलोकमें पर्यटन करता हुआ किस प्रकार कलि से त्राण पा सकता हूं ?
महामंत्र क्या है | What is Mahamantra
ब्रह्माजी बोले – वत्स ! तुमनें बहोत ही अच्छी बात पुछी हे । समस्त श्रुतियोंका जो गोपनीय रहस्य है उसे श्रवण करो – जिनसे तुम कलियुग में भवसागर को पार करलोगे । भगवान आदिपुरुष नारायण का नामोच्चारण मात्र से मनुष्य कलि के दोषो का नाश करदेता है ।
नारदजी नें पुन पुछा वह कोनसा है नाम है ? हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी नें कहा –
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
यह सोलह नाम कलि के पापो का नाश करनें वाले है । इससे श्रेष्ठ उपाय सारे वेदो में नहि है ।
नारदजी नें पूछा – इसके जप कि विधि क्या है ? ब्रह्माजी नें कहा इसकि कोय विधि नहि है । इसका जप पवित्र/अपवित्र अवस्थामें भी किया जासकता है । इस नाम से जीव शीघ्रही मुक्त होजाता है ।
कृष्णयजूर्वेदीय कलिसंतरणोपनिषद् ।।
इस महामंत्र को हरे कृष्ण से प्रारंभ करके भी बहोत से वैष्णवजन जपकरते है तथा किर्तन करते है यह अनुचित नहि है हमारे लिये दोनो ग्राह्य है क्युकि ब्रह्मवैवर्तपुराण में हरेकृष्ण…से प्रारंभ करके इस रुप में मंत्र आया है ।
परन्तु कलिसंतरणोपनिषद् का मंत्र हरे राम से प्रारंभ होता है या वैदिक है ।ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार हरे कृष्ण से प्रारंभ होता है यह पौराणिक है ।बस इतना अन्तर है ।
पुज्य धर्मसम्राट स्वामीश्री करपात्री जी महाराज, अखंडानंदसरस्वती जी महाराज, हनुमान प्रसाद पोद्दार जी, जयदयाल गोयन्का जी, श्रीउडियाबाबाजी, आदी अन्य महापुरुषो नें यहि कलिसंतरणोपनिषद् के मंत्र जो हरे राम से प्रारंभ होता है उनको स्विकार किया है इसलिये कलिसंतरोणपनिषद् के अनुसार जप करना चाहीये किर्तन करना चाहीए एसा उपरयुक्त दिये गये नाम वाले महापुरुषो का निर्देश है ।
अब प्रश्न होता है कि मंत्र वैदिक है तो इसके तो नियम है इसलिए मंत्र को उल्टा करदिया जाय पर इस संशय का समाधान स्वयम् उपनिषद नें किया है कि यह मंत्र सभी जपसकते यह वेद भगवान कि आज्ञा है इसलिये उपवित, अनुपित, स्त्री, बालक, वृद्ध, सब जप/किर्तन करसकते है ।
यह मंत्र किसका वाचक है तो बात तो यह है कि इस मंत्र नारायण राम ओर कृष्ण यह तीनो का वाचक मंत्र है ।
हरे = नारायण
राम = रामजी
कृष्ण = कृष्णजी
रामकृष्णहरि इन्ही का वाचक मंत्र है ।
इसलिये महाराष्ट्र के संतो नें विचार किया मंत्र बड्डा है तो उन्होनें छोटा करदिया जय जय रामकृष्णहरि ।यह युगलमंत्र है ।
हरे शब्द का अर्थ श्रीसीताजी है यथा (देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद) हरी शब्द से भी संम्बोधन में हरे बनेगा तथा “हरति इति हरा सीता” हरण करने वाली को हरा कहेंगें हरा से भी हरी शब्द बनेगा जेसे रमा शब्द से रमे बनता है वेसे ही हरा से हरी बनेगा हरे शब्द जब राम से जुडेगा तभी सीताराम ओर हरे शब्द जब श्रीकृष्ण से जुडेगा तब “हरति इति हरा राधा” राधेकृष्ण ।
अब सत्य तो यहि है कि न भगवान में भेद मानना चाहिये ना उनके नामो में भेद मानना चाहिये ।
इसलिये भेद न मानते हुये भगवद्अपराध तथा नामापराध से बचते हुये भगवतभजन नामोच्चारण करना चाहिये भगवान का आश्रय शरण ग्रहण करनी चाहिये ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।