श्री चामुंडा देवी मंदिर :->यह देवी मंदिर कांगड़ा से 25 किलोमीटर होशियारपुर से 140 और ऊना से 160 किलोमीटर की दूरी पर चामुंडा नगर में स्थापित है | यह शिव और शक्ति का स्थान है| जिसको चामुंडा नंदीकेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है |
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श्री चामुंडा देवी मंदिर | Shree chamunda devi mandir
बाण गंगा के तट पर स्थित यह उग्र शक्तिपीठ प्राचीन काल से ही योगियों एव तांत्रिकों के लिए एकांत शांति प्राकृतिक शोभा से युकत स्थान है।
बाईस ग्रामों की शमशान भूमि को महाकाली चामुंडा के रूप में मंत्र विद्या और सिद्धि का वरदायी क्षेत्र माना गया है |
यहां भगवान शिव साक्षात मां चामुंडा के साथ बैठे हैं| यह भक्तगण शिव और शक्ति मंत्रों से पूजन दान तथा श्राद्ध पिंडदान आदि करते हैं |श्री चामुंडा का पौराणिक कथा लक एवं ऐतिहासिक दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में स्पष्ट हुआ है।
मंदिर की प्राचीन परंपरा :-
मंदिर की प्राचीन परंपरा एवं भौगोलिक स्थिति से स्पष्ट होता है कि यही वह स्थान है जहां चंड मुंड राक्षस देवी से युद्ध करने आए और काली रूप धारण देवी ने उनका वध किया। उनकी मृत्यु के पश्चात रक्तबीज नामक दैत्य विशाल सेना लेकर देवी के सम्मुख उपस्थित हुआ और देवी से युद्ध करने लगा |देवी रक्तबीज की सेना का संहार करने लगी|
इसी तरह रक्तबीज का वध करके देवी ने देवताओं को निर्भय किया |देवी का यह काला भयानक रूप शास्त्रों में चामुंडा कहा गया तथा सांसारिक प्राणियों ने महाकाली के रूप में जाना| अंबिका की भुकुटि से उत्पन्न कालिका ने जब चंड और मुंड सिर उस को उपहार स्वरूप भेंट किए तो अंबा ने प्रसन्न होकर वर दिया कि तुमने चंड मुंड का वध किया है
अंत संसार में तुम चामुंडा नाम से विख्यात हो जाओगी। कहा जाता है कि इस ग्राम के एक देवी भगत को स्वपन में चामुंडा भगवती ने आदेश दिया कि जिस पिंड पर मेरा प्रतिदान पूजन होता है|
उस पर मेरी मूर्ति की स्थापना करो |बाण गंगा के पार करके नीचे मेरी मूर्ति है उसी को इस पर स्थापित कर दीजिए और वहां मेरा पूजन किया जाए| तब से इस मूर्ति पर भगवती का पूजन होता है किसी देवी भक्तों ने यह मंदिर बनवाया है जो 700 वर्ष पुराना है।
चामुंडा देवी के बगल में नंदीकेशवर महादेव:-
चामुंडा देवी के बगल में नंदीकेशवर महादेव का मंदिर स्थापित है| यह स्थान शिव शक्ति का संयुक्त स्थान है| तेत्रायुग में नंदी नाम के एक मुनि थे |उन्होंने भगवान शिव की भक्ति प्राप्त करके करने के लिए अनेक वर्षों तक कठोर तप किया|
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया और वर मांगने के लिए कहा| नंदी ने कहा कि “प्रभु आपके दर्शन हो गए, मुझे सब कुछ मिल गया, मैं रात दिन आपका ही नाम जपता रहूं यही मेरी कामना है। नंदी की अभिलाषा शंकर भगवान शिव ने कहा कि है नंदी आज से तुम मेरे वरदान के प्रभाव से संपूर्ण संसार में पूजा प्राप्त करोगे |
तुम सदा अमर रहोगे| मेरे गणो में तुम्हारा प्रथम स्थान होगा दुनिया तुम्हें नंदीकेश्वर के नाम से पुकारेगी |मुनि ने हाथ जोड़कर भगवान शिव के आदेश को स्वीकार किया और नंदीकेश्वर के नाम से वहीं स्थापित हों गए |
इस शिव मंदिर के गर्भ गृह में एक विराट शीला के नीचे छोटी सी गुफा में शिवलिंग स्थापित है |मुश्किल से एक या दो व्यक्ति बैठकर शिवलिंग का दर्शन और पूजन कर सकते हैं।
पूर्ण मूर्ति का दर्शन :-
देवी के मंदिर में माता की पूर्ण मूर्ति का दर्शन होता है गर्भ ग्रह की चारों दीवारों को चांदी के पत्रों से सजाया गया है |मूर्ति का शृंगार वस्त्र, आभूषण एवं पुष्पों से प्रतिदिन किया जाता है| दोनों समय वैदिक रीति से षोडशोपचार द्वारा पूजन होती है |
दोनों समय की आरती जन श्रद्धा का प्रतीक बन गई है| वर्ष में शरद नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि, श्रावण गुप्त नवरात्रि, शिवरात्रि कृष्ण जन्माष्टमी, दीपावली, लोहरी आदि त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाई जाते हैं।
चामुंडा देवी मंदिर का क्षेत्रफल :-
मंदिर का क्षेत्रफल 1 एकड़ है |मंदिर का वार्षिक बजट 2 करोड़ 15 लाख रुपए है |मंदिर में 7 पुजारी 56 कर्मचारी कार्य करते हैं| सामान्य दिनों में 500 – 1000, रविवार, शनिवार, मंगलवार को 6-8 हजार, नवरात्रों में 2 लाख एवं प्रति वर्ष 4 से 5 लाख भत दर्शन करते हैं |फल फूल व प्रसाद की 40 से 50 दुकाने है।