रमा एकादशी व्रत कथा | Rama ekadashi vrat katha :->रमा एकादशी व्रत कथा सब मनोकामना को पूर्ण करने वाला है। यह नवंबर 1 तिथि को है
रमा एकादशी व्रत कथा | Rama ekadashi vrat katha
युधिस्टर बोले- हे जनार्दन कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है यह मुझ से कहिए| तब कृष्ण जी बोले- हे राज शार्दुल कार्तिक कृष्ण पक्ष में रामा नाम की शुभ एकादशी होती है उसको कहता हूं तुम सुनो।
यह सब पापों को हरने वाली है प्राचीन समय में मुचकुंद नामक राजा था उसकी इंद्र से मित्रता थी।
यम वरुण कुबेर और भविष्य से इसकी मित्रता हो गई। हे राजन वह राजा विष्णु का भक्त और सत्यवादी था धर्म से पालन करते हुए उसका निश कंटक राज्य हो गया उसके घर में बैठी थी उसका नाम चंद्रभागा था उसका चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ में विवाह हो गया था।
वह शोभन कभी अपने ससुर के घर पर आया। उसी दिन पवित्र एकादशी का व्रत आया व्रत का दिन आने पर चंद्रभागा विचार करने लगी किसकी हे ईश्वर क्या होगा?
मेरा पति तो बहुत निर्भर है। वसुधा को सहन नहीं कर सकता और मेरे पिता का शासन बहुत कठिन है। को ढोडी पटवा देते हैं कि एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए | डम डमीका मीका का शब्द सुनकर शोभन अपनी स्त्री से बोला है
हे कांत अब मुझे क्या करना चाहिए? शुभ ने इसके करने से मेरे जीवन नष्ट ना हो ऐसी शिक्षा दो। चंद्रभागा बोली है विवो मेरे पिता के घर में कोई भोजन नहीं करता| हाथी घोड़े तथा पशु भी नहीं खाते
हैं कांति। भोजन करना चाहो तो घर से चले जाइए। शोभन बोला। सत्य कहा है मैं व्रत करूंगा जो भाग्य में लिखा है वह वैसा ही होगा इस प्रकार भाग्य का विचार करके उसने उत्तम रक्त को किया।
भूख प्यास से पीड़ित होकर वह बहुत दुखी हुआ। वे व्याकुल हो रहा था। सूर्य अस्त हो गया। वह रात्रि वैष्णव मनुष्यों को हर्ष बढ़ाने वाली हुई।
हे नृप श्रद्धालुओं। की पूजा करने वाले और जागरण करने वालों को वह रात्रि आनंद देने वाली हुई और शोभन के लिए asay हो गई।
सूर्योदय के समय शोभन की मृत्यु हो गई राजा ने योग सुगंधित चंदन की लकड़ी से उसका दाग कर्म कराएं चंद्रभागा ने पिता के निषेध करने से अपना शरीर नहीं दिलाया। उसका अंतिम संस्कार कर के पिता के घर में रहने लगी।
हेनरी श्रेष्ठ। मां के व्रत के प्रभाव से मंदराचल के शिखर पर शोभन को बहुत रमणीय देवपुरी मिला। वह बहुत उत्तम और अनेक गुणों से युक्त था |
उसमें पन्नों से जुड़े हुए स्वर्ण के खंभे थे| अनेक प्रकार की सटीक मणियों से सुशोभित भवन मे वह निवास करने लगा। सिंहासन पर बैठ गया। श्वेत छात्र और चावल प्राप्त हो गए। प्रीत गुंडल हार बाजूबंद इनसे सुशोभित हो गया।
गंधर्व और अप्सरा सेवन करने लगे। वह शोभन दूसरे इंद्र की तरह शोभा को प्राप्त हुआ। मुछकुंड पूर्व में रहने वाला सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा के लिए भ्रमण करता हुआ गया।
उसने जमाई को देखा वह उसके पास गया उस शोभन ने शीघ्र शासन से उठकर ब्राह्मण को नमस्कार किया और अपने श्वसुर की क्षमा कुशल पूछी और अपनी स्त्री चंद्रभागा तथा नगर वासियों की कुशल पूछी।
सोनू शर्मा बोले राजन। तुम्हारे ससुर के घर में कुशल है। चंद्रभागा सकुशल है और नगर में सर्वत्र कुशल है हे राजन आप अपना कुशल वृतांत कहिए। हे राजन यह चित्र नगर आपको कैसे मिला? तो कहिए। शोभन बोला।
कार्तिक कृष्ण पक्ष में एकादशी होती है वह। हेड विजेंद्र उसका उपवास करने से यह अस्थिर पर मुझको मिला है। जिस तरह अटल हो जाए ऐसा जतन कहिए। ब्राह्मण बोला है राजेंद्र यह सिर क्यों नहीं है और अटल किस तरह होगा? वह मुझ से कहिए। मैं उसका निश्चय कर लूंगा। शोभन बोला। हे विप रे। मैंने यह व्रत श्रद्धा पूर्वक नहीं किया।
आधा मैं इस नगर को स्थिर समझता हूं। चंद्रभागा से यह वृत्तांत कहिए तब यह नगर स्थिर हो जाएगा। यह बात सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने सब वृतांत चंद्रभागा से कह दिया। ब्राह्मण का वचन सुनकर चंद्रभागा आश्चर्य से प्रफुल्लित हो गई। ब्राह्मण से बोली है विजय।
जो तुम कह रही हो यह वृत्तांत प्रत्यक्ष है अथवा स्वपन। सोम शर्मा बोला है। तुम्हारे पति को मैंने आंखों से देखा और देवताओं के समान उसका प्रकाशमान भी देखा है।
उसने उसको अस्थिर बताया है। उसके अटल होने पर उपाय करो। चंद्रभागा बोली मुझको वहां ले चलिए। हे द्विज। अपने व्रत के पुण्य से मैं उस नगर को अटल कर दूंगी।
जिस प्रकार हम दोनों का मिलाप हो जाए ऐसा उपाय करिए। बिछड़े हुए एक मिलाप कराने से बड़ा पुण्य होता है। यह सुनकर सोम शर्मा उसके साथ चला गया। मंदराचल पर्वत के समीप रामदेव के आश्रम में सोम शर्मा गया।
बामदेव ने उसको कहा हुआ सब वृतांत सुना। उज्जवल चंद्रभागा का वेद के मंत्र से अभिषेक किया। ऋषि के मंत्रों के प्रभाव से एकादशी के व्रत के प्रभाव से चंद्रभागा का।
दिव्य शरीर हो गया और दिव्य गति को प्राप्त हुई। प्रसंता से प्रफुल्लित नेत्र किए हुए अपने पति के पास पहुंच गई। शोभन भी अपनी आई हुई स्त्री को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बैठा लिया।
वह चंद्रभागा अपनी पति से प्रसन्न होकर सुंदर वचन बोली है कहां? जो कुछ पुण्य मेरे पास है उसको सुनिए। जब मैं पिता के घर में 6 वर्ष की थी तभी से मैंने एकादशी का व्रत विधि पूर्वक और श्रद्धा युक्त क्षेत्र से किया है।
उस पुण्य के प्रभाव से तुम्हारा नगर अचल हो जाएगा। महाप्रलय तक सब कार्य पूर्ण होगा। इस प्रकार वह अपने पति के साथ आनंद से रहने लगी। वैद्य रूप होकर सुंदर आभूषणों से सुशोभित होकर सुख भोगने लगी।
उसके साथ दिव्य रूप होकर बिहार करने लगा। रमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से वह मंदराचल के शिखर पर आनंद करने लगे। यह एकादशी चिंतामणि अथवा कामधेनु के समान है।
जो उत्तम मनुष्य सूरत को करते हैं और जो दोनों पक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं। निसंदेह उनके भ्रम हत्यारी पापनाश को प्राप्त होते हैं। जैसी एकादशी शुक्ल पक्ष की है वैसी कृष्ण पक्ष की है इसमें वेदना समझना चाहिए। मनुष्य एकादशी के व्रत का महत्व सुनता है वह सब पापों से छूट कर विष्णुलोक में आनंद प्राप्त करता है।
रमा एकादशी पूजा विधि और नियम:-
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें. इसके बाद भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें और पुष्प, तुलसी दल अर्पित करें. अगर संभव हो सके तो एकादशी का व्रत भी रखें और आखिर में आरती करें. |
रमा एकादशी कब है:-
इसलिए रमा एकादशी का व्रत 1 नवंबर 2021 को रखा जाएगा. वैसे एकादशी का दशमी तिथि की शाम सूर्यास्त के बाद से शुरू हो जाता है