जीव मृत्यु के पश्चात कहाँ और क्यों जाता है ? :-> मृत्यु के पशचात जीव कहाँ जाता है इसके लिया कोई समान नियम नहीं है किन्तु प्र्तेक जीवन की स्व-कर्मानुसार भिविन्न प्रकार की गति होती है यही कर्म यही कर्म का सर्वमान्य सिद्धांत है। मुख्यता प्रथम दो गति समझनी चाहिए ,पहली यह की जिसमें जीव जीवत्व भाव से छुटकारा जनम मरण के प्रपंच से सदा के लिया मुक्त हो जाये और दूसरी यह की कर्मानुसार स्वर्गनरक अदि लोको को भोगकर पुनः मृत्युलोक में जनम धारण करे ।
वेदादि शास्त्रों में उकत दोनों गतिया को कई नमो से बतलाया गया है। जैसे –
अर्थात देव मनुष्य अदि प्राणियों की मृत्यु के अनन्तर दो गति होती है। इस जंगम जगत के प्राणियो की अगनि,ज्योति ,दिन शुकल पक्ष और उत्तरायण के उपलक्षित प्रथम गति तथा कृषणपक्ष और दक्षिण्यान से उपलक्षित भेदन करके सर्वदा के लिए जनम मरण के बंदन से छूठ जाता है और दूसरा मार्ग से प्रयाण करने वाला जीव कर्मानुसार पुनः जनम मरण के बक्र चक्र में पड़कर परिभ्रमण करता रहता है।