एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं होता?:–>शास्त्र की आज्ञा है कि एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिये। पुष्कर खंड में भगवान शंकर ने पार्वती जी को स्पष्ट रूप से कहा है, जो एकादशी के दिन श्राद्ध करते हैं तो श्राद्ध को खाने वाला और श्राद्ध को खिलाने वाला और जिस के निमित्त वह श्राद्ध हो रहा है वह पितर, तीनों नर्क गामी होते हैं ।
उसके लिए ठीक तो यही होगा कि वह उस दिन के निमित्त द्वादशी को श्राद्ध करें।तो हमारे महापुरुषों का कहना है कि अगर द्वादशी को श्राद्ध नहीं करें और एकादशी को करना चाहें तो पितरों का पूजन कर निर्धन ब्राह्मण को केवल फलाहार करावें ।
भले ही वह ब्राह्मण एकादशी करता हो या ना करता हो। लेकिन हमें उस दिन उसे फलाहार ही करवाना चाहिए ।
श्राद्ध में कभी स्त्री को श्राद्ध नहीं खिलाया जाता(एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं होता?):-
आजकल एक प्रचलन है पिताजी का श्राद्ध है तो पंडित जी को खिलाया और माता जी का श्राद्ध है तो ब्राह्मणी को खिलाया; यह शास्त्र विरुद्ध है।
स्त्री को श्राद्ध का भोजन करने की आज्ञा नहीं है ।क्योंकि वह जनेऊ धारण नहीं कर सकती, उनको अशुद्ध अवस्था आती है, वह संकल्प नहीं करा सकती, तो ब्राह्मण को ही श्राद्ध का भोजन कराना चाहिए ।
ब्राह्मण के साथ ब्राह्मणी आ जाए उनकी पत्नी आ जाए साथ में बच्चे आ जाएं कोई हर्ज नहीं पर अकेली ब्राह्मणी को भोजन कराना शास्त्र विरुद्ध है।
पित्तृ पूजन में पितरों को कभी सीधे थाली नहीं देनी चाहिए। वैष्णवों में पहले भोजन बना कर पृथम ठाकुर जी को भोग लगाना चाहिए, और फिर वह प्रसाद पितरों को देना चाहिए, कारण क्या है वैष्णव कभी भी अमनिया वस्तु किसी को नहीं देगा।
भगवान का प्रसाद ही अर्पण करेगा और भगवान का प्रसाद पितरों को देने से उनको संतुष्टि होगी। इसलिए पितरों को प्रसाद अर्पण करना चाहिए । पित्तृ लोक का एक दिन मृत्यु लोक के 1 वर्ष के बराबर होता है ।
यहां 1 वर्ष बीतता है पितृ लोक में 1 दिन बीतता है । केवल श्राद्ध ही नहीं अपने पितरों के निमित्त श्री गीता पाठ, श्री विष्णु सहस्त्रनाम, श्री महा मंत्र का जप और नाम स्मरण अवश्य करना चाहिए। पितृ कर्म करना यह हमारा दायित्व है । जब तक यह पंच भौतिक देह है तब तक इस संबंध में जो शास्त्र आज्ञा और उपक्रम है उनका भी निर्वाह करना पड़ेगा | जय श्री राम !
एकादशी के दिन श्राद्ध नहीं होता?