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मीरा प्रसिद्ध पद | Meera ke pad

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मीरा प्रसिद्ध पद | Meera ke pad :->बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि हिंदी में Meera Padawali कहते हैं |बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि हिंदी में साली का मतलब कहते हैं इसके शिक्षण हमने नीचे दिया हुआ  है

मीरा प्रसिद्ध पद | Meera ke pad

पायो जी मैंने

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥

सुण लीजो बिनती मोरी

सुण लीजो बिनती मोरी,
मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे,
भव सागरसे तारे॥
मैं सबका तो नाम न जानूँ,
कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा,
तुम पहुँचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक,
तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया,
भक्त कबिरा का बैल चराया॥
सबरी का जूंठा फल खाया,
तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाईको,
तुम कीन्हा अपनाई॥
करमा की खिचड़ी खाई,
तुम गणि का पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रँग राती,
या जानत सब दुनियाई॥

“कृष्ण मंदिरमों मिराबाई नाचे”

कृष्ण मंदिर में मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी।
पाव में घुंगरू झुमझुम वाजे। तो ताल राखो घुंगटकी॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी॥टेक॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टब की॥२॥
बीख कटोरा राजाजी ने भेजो तो संटसंग मीरा हट की।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृत की॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी।
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं।।
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं।।
तन मन सुरति संजो सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं।।
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोडी छोडी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ।।
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये।।३।।

“मीरा के होली पद”

फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥

हरि तुम हरो जन की भीर


हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी,
तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,
धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,
धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,
कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,
चरण-कंवल पर सीर॥

प्रेम बिना पामे नहीं,भले हुन्नर करे हजार।
कहे प्रीतम प्रेम बिना,मिले नहीं नंदकुमार ।।
हरि व्यापक सर्वत्र समाना।
प्रेम ते प्रगट होइ मैं जाना।।

ना मैं जानू आरती वन्दन, ना पूजा की रीत।
लिए री मैंने दो नैनो के दीपक लिए संजोये॥
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी,मेरो दरद न जाणै कोय।

घायल की गति घायल जाणै
जो कोई घायल होय।
जौहरि की गति जौहरी जाणै
की जिन जौहर होय॥

सूली ऊपर सेज हमारी
सोवण किस बिध होय।
गगनमंडल पर सेज पियाकी
किस बिध मिलणा होय॥

दरद की मारी बन-बन डोलूं
बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटेगी
जद बैद सांवरिया होय॥

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