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12 ज्योतिर्लिंग के नाम | 12 jyotirling ke naam

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12 ज्योतिर्लिंग के नाम | 12 jyotirling ke naam :->भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं | लेकिन क्या आप 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम जानते हैं, क्या आप जानते हैं कि 12 ज्योतिर्लिंग कहां हैं और उनकी पौरणिक कथा क्या है

12 ज्योतिर्लिंग के नाम | 12 jyotirling ke naam

1:सोमनाथ मंदिर | Somnath Temple

दक्ष प्रजापतिकी सताईस कन्या थी | उन सभी का विवाह चंद्र देवता के साथ हुआ था |किन्तु चन्द्रमा समस्त अनुराग उन में से केवल रोहणीके प्रति हे करता था | उनके इस कार्य से प्रजापति की अन्य सभी कन्या अति दुखी थी | उन्हों ने अपनी सम्पूर्ण हालत अपने पिता को बता दिए|

पहले तो इसके लिया दक्ष प्रजापति ने चन्द्रमा को बहुत समझाया |किन्तु रोहणीके वशिभूत उनके ह्रदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा | अन्तः दक्ष ने क्रोध में आकर चन्द्रमा को छई यानि करूप होने का श्राप दे दिया | इस शापके कारण चंद्रदेव तत्काल शयग्रस्त हो गये|

श्रापित होने के उपरांत पृत्वी पर सुधा -शीतलता -वृषणका उनका सारा कार्य रुक गया | चारो और त्राहि त्राहि मच गई |चन्द्रमा भी बहुत दुखी अथवा चिंतित थे |उनकी प्राथना सुनकर इंदर अदि देवता तथा विशिष्ट जी और अदि ऋषिगण उनके उदारके लिया ब्रह्माजी के पास गये|

ब्रह्मा जी कहते है ‘ चंद्रदेव अपने शाप विमोचन के लिये अन्य देवो के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्रमें जाकर मृत्युंजयभगवान जी आरधना करे ‘| उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और यह रोगमुक्त हो जायेंगे|

उनके कथानुसार चन्द्रदेवने मृत्युंजय भगवान की आराधना का सारा कार्य पूरा किया | उनोने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ मृत्युज्जयमन्त्र का जप किया | इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय –भगवान शिव ने उनने अमरतब का वर प्रदान किया |

क्या कहा भोलेनाथ ने(kya kaha bholenath ka ) :-

बाबा भोलेनाथ ने कहा चंद्रदेव ! तुम शोक न करो | मेरे वरसे तुम्हारा शाप विमोचन तो होगा ही ,साथ-ही साथ प्रजापति दक्षके वचनोंकी रक्षा रक्षा भी हो जाएगी | कृषणपक्ष में प्रतिदिन तुमारी एक एक कला बढ़ जाया करेगी |

इस प्रकार प्र्तेक पूर्णिमाको तुम्हे पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा |चन्द्रमा को मिलना वाले पितामह ब्रह्माजी के इस वरदानसे सारे लोकोके प्राणी प्र्सन हो उठे |सुधाकर चंद्रदेव पुंन: दसो दिशामें सुधा -वृषणका कार्य पूर्बवत करने लगे |

शापमुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओंके साथ मिलकर मृत्युंजय भगवानसे प्राथना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदाके लिये प्राणियोंके उद्धारारथ यहाँ निवास करे |

स्वीकार की भगवान शिव ने प्राथना(swikar kare baba ne prathna ):–

भगवान शिव उनकी इस प्राथनाको स्वीकार करके ज्योतिलिंगके रूपमें माता पार्वतीजीके साथ तभीसे यहाँ रहने लगे |

सोमनाथ ज्योर्तिलिंगम की महिमा महाभारत , श्रीमद्धभागवत तथा स्कंदपुराणआदिमें विस्तारसे बताई गई है |चन्द्रमा के एक नाम सोम भी है ,उह्नो ने ही भगवान शिव को अपना नाथ – स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी

अतः इस ज्योतिलिंगको सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन ,पूजन ,आराधना से भक्तोंके जन्म जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते है यातक भगवान शिव और माँ पारवती की अक्षयकृपा का पात्र बन जाता है |

मोक्ष का मार्ग उनके लिये सहज ही सुलभ ही सुलभ हो जाता है | उनके लौकिक -पारलौकिक सारे कृत्य स्वयमेव ,अनायास सफल हो जाते है|

  गुजरात सौराष्ट्र में स्थित है भगवान भोलेनाथ का पहला ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ मंदिर की टाइमिंग (somnath temple timing)

Friday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
Saturday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
Sunday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
Monday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
Tuesday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
Wednesday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
Thursday7:30–11am, 12:30–6:30pm, 7:30–10pm
भगवान सोमनाथ का मंदिर गुजरात के पश्चिमी भाग में वेरावल शहर के पास स्थित है। वेरावल तक राजकोट से पहुंचा जाता है।
 
पुराणों में वर्णित इस ज्योतिर्लिंग के उद्भव से जुड़ी एक रोचक कथा है।

सोमनाथ मंदिर कहाँ है (Where is somnath temple ):-

मंदिर गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ क्षेत्र में समुन्दर के किनारे स्तिथ है

2 :- श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|| Shree Mahakleshwar jyotirlinga

इस ज्योतिर्लिंग की कथा पुराणों में इस प्रकार बताई गई है। प्राचीन काल में उज्जैन में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे। वह परम शिव भक्त थे। 1 दिन फ्री कर नामक एक 5 वर्ष का गोत बालक अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था।

राजा का शिवपूजन देकर उसे बहुत विश्व में और कुतूहल हुआ। वे स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिव पूजन करने के लिए लालता हो उठा। 

सामग्री का साधन ना टूट पाने पर लौटते समय उसने रास्ते में एक पत्थर का टुकड़ा उठा लिया। आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प चंदन आदि से परम श्रद्धा पूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माता भोजन करने के लिए बुला ले आई। किंतु वह पूजा छोड़कर उठने के लिए किसी प्रकार भी तैयार नहीं हुआ।

अंत में माता ने जलाकर पत्थर का टुकड़ा उठाकर दूर फेंक दिया। इससे बहुत ही दुखी होकर में बालक जोर-जोर से भगवान शिव को पकड़ता हुआ रोने लगा। रोते-रोते अंत में बेहोश होकर वह वहीं गिर पड़ा।

बालक की अपने प्रति या भक्ति और प्रेम देखकर आशुतोष भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो गए। बालक ने यूं ही होश में आकर अपने नेत्र खोले तो उसने देखा कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य अति विशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है।

कुछ मंदिर के भीतर एक बहुत ही प्रकाश पूर्णमासी व्रत तेजस्वी ज्योतिर्लिंग खड़ा है। बच्चा प्रसाद था और अलग से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा। माता को जब यह समाचार मिला था वह दौड़ कर उसने अपने प्यारे लाल को गले से लगा लिया।

पीछे राजा चंद्रसेन ने भी वहां पहुंच कर उस बच्चे की भक्ति और सिद्धि की बड़ी सराहना की। धीरे-धीरे वह बड़ी भीड़ जुट गई। इतने में उस स्थान पर हनुमान जी प्रकट हो गए हैं। उन्होंने कहा मनुष्य भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम है।

इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है जो बड़े-बड़े ऋषि मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर सकते। इस ग्रुप बालक की आठवीं पीढ़ी में धर्मात्मा  नंद गोप का जन्म होगा। द्वापर युग में भगवान विष्णु कृष्ण अवतार लेकर उनके बाद तरह-तरह की लीला करेंगे।

हनुमान जी इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए उस स्थान पर नियम से भगवान शिव की आराधना करते हुए अंत में श्री कर गोप और राजा चंद्रसेन शिवधाम को चले गए। इस ज्योतिर्लिंग के विश्व में एक दूसरी कथा इस प्रकार कही जाती है। किसी समय अवंतिकापुरी में वेद पाठी तपो लिस्ट एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे।

1 दिन दूषण नामक एक अत्याचारी पर्सनल की तपस्या में विघ्न डालने के लिए वहां आया। ब्रह्मा जी के बरसे वह बहुत शक्तिशाली हो गया था।

उसके अत्याचारों से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। ब्राह्मण को कष्ट में पड़ा देखकर प्राणी मात्र का कल्याण करने वाले भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए।

उन्होंने एक हुंकार मात्र से उसे दारुण अत्याचारी दानवों को वही जलाकर भस्म कर दिया। भगवान महा हुंकार सहित प्रकट हुए इसलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। इसलिए इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंग महाकाल के नाम से जाना जाता है।

महाभारत शिव पुराण एवं स्कंध प्राणों में इस ज्योतिर्लिंग महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है।

3: श्री ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग | Shri Omkareshwar Jyotivlinga

पूर्व काल में महाराज मंदिर जाने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसी से इस पर्वत को मान्यता पर्वत कहा जाने लगा। इस ज्योतिर्लिंग मंदिर के भीतर दो कोठियों से होकर जाना पड़ता है।

अभी तक अंधेरा रहने के कारण यहां निरंतर प्रकाश जलता रहता है। ओम कालेश्वर मनुष्य निर्मित नहीं है। स्वयं प्रकृति ने इसके निर्माण किया है।

इसके चारों और हमेशा जल भरा रहता है। संपूर्ण मंदता पर्वत ही भगवान शिव का रूप माना जाता है। इसी कारण इसे शिवपुरी भी कहते हैं। लो भक्ति पूर्वक इसकी प्रक्रिया करते हैं।

कार्तिकी की पूर्णिमा के दिन यहां बहुत भारी मेला लगता है। यह लो भगवान शिव जी के चने की दाल चढ़ाते हैं। रात्रि के शयन आरती का कार्यक्रम बड़ी भव्यता के साथ होता है। तीर्थ यात्रियों को इस के दर्शन अवश्य करने चाहिए।

इस ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग दो स्वरूप है। एक को और अमलेश्वर नाम से  जाना जाता है। नर्मदा के दक्षिणी तट पर ओमकारेश्वर थोड़ी दूर हटकर है। 3:00 तक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है।श्री अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग

लिंग के दोस्त रूप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है। इस बार विंध्या पर्वत ने पृथ्वी अर्चना के साथ भगवान शिव की चौथ माता कटिंग उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर भूत भावन शंकर जी वहां प्रकट हुए। उन्होंने विंध्या को उनके मनोवांछित वर प्रदान की। विंध्याचल की ईश्वर प्राप्ति के अवसर पर वह बहुत से ऋषि और मुनि भी पधारें।

उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओमकारेश्वर नाफरेलीन के दो भाग्य। एक अलार्म ओमकारेश्वर और दूसरे काला अमलेश्वर पड़ा। दोनों लोगों का स्थान और मंदिर पृथक होते हुए भी दोनों की सत्ता और स्वरूप है एक ही माना गया है।

शिवपुराण इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्री ओंकारेश्वर और श्री अमलेश्वर दर्शन का पुण्य बताते हुए नर्मदा स्नान के पावन पर्व की भी वर्णन किया गया है।

प्रत्येक मनुष्य को इस क्षेत्र की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए। लौकिक पारलौकिक दोनों प्रकार के उत्तम फलों की प्राप्ति भगवान ओंकारेश्वर कृपा से सहज ही हो जाती है। अर्थ धर्म काम मोक्ष के सभी साधन उसके लिए सहज ही सुलभ हो जाते हैं। अंततः उसे लोकेश्वर महादेव भगवान शिव के परमधाम की प्राप्ति भी हो जाती है।

जवान शिव तो भक्तों पर अकारण ही कृपा करने वाले हैं। अब  वह बहुत धनी है। फिर जो लोग यहां आकर उनके दर्शन करते हैं उनके सौभाग्य के विश्व में कहना ही क्या? उनके लिए तो सभी प्रकार के उत्तम पुण्य मार्क सदा सदा के लिए खुल  जाते हैं।

4:श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग | Shri Mallikarjuna Jyotirlinga

एक बार की बात है भगवान शंकर जी दोनों पुत्र श्री गणेश और श्री स्वामी कार्तिकेय विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे। प्रत्येक का का आग्रह था कि पहले मेरा विवाह किया जाए। उन्हें लड़ते झगड़ते देखकर भगवान शंकर और मां भवानी ने कहा तुम लोगों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर यहां वापस लौट आएगा उसी का विवाह पहले किया जाएगा।

माता-पिता की यह बात सुनकर श्री स्वामी कार्तिकेय को तुरंत पृथ्वी पर कितना के लिए दौड़ पड़े। लेकिन गणेश जी के लिए यह कार्य बड़ा ही कठिन था। एक तो उनकी काया स्थूल थी दूसरे उनका वाहन भी मूषक चूहा था। भला वह दौड़ में स्वामी कार्तिकेय की क्षमता किस प्रकार कर पाते। लेकिन उनकी कहा जितनी तुलसीपुर थी उसी के अनेक अनुपात में सूक्ष्म   और तेज थी।

उन्होंने अभिलंब पृथ्वी की परिक्रमा एक सुगम उपाय खोज लिया। सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात उनके साथ परीक्षण करके उन्होंने पृथ्वी की प्रदक्षिणा का कार्य पूरे कर लिया। उनका आज्ञाकारी शास्त्र के मुताबिक था।

  पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर स्वामी कार्तिकेय जब तक लौटे तब तक गणेश जी का सिद्धि और बुद्धि नाम वाली दो कन्याओं के साथ विवाह हो चुका था उन्हें शेम तथा लाभ नामक दो पुत्र की प्राप्त हो चुके थे यह सब देखकर स्वामी कार्तिकेय अत्यंत रुष्ट होकर गुरु पर्वत पर चले गए माता पार्वती वहां उन्हें मनाने पहुंचे।

पीछे शंकर भगवान वहां पहुंचकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और तब से मल्लिका अर्जुन ज्योतिर्लिंग नाम से प्रख्यात हुए। इनकी अर्चना सर्वप्रथम मलिक का पुष्पों से की गई थी। आयोग का नाम पढ़ने का यही कारण है।

एक दूसरे कथा यह भी कही जाती है इस। इस शैल पर्वत के निकट किसी समय राजा चंद्रगुप्त की राजधानी थी। किसी व्यक्ति विशेष के निवारण उनकी एक कन्या महल से निकलकर एस पर्वतराज के आश्चर्य में आकर यहां के घोड़ों के साथ रहने लगी। उस कन्या के पास एक बड़ी ही शुभम क्षण सुंदर श्याम  गो  थी।

उस गांव का दूध रात में कोई चोरी से दूर ले जाता था। 1 दिन संयोगवश उस राज कन्या ने चोरों को दूध तोते देख लिया और क्रूर होकर उस चोरी की और लोहड़ी। किंतु गांव के पास पहुंच कर उसने देखा कि वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

राजकुमारी ने कुछ काल पश्चात उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया यही शिवलिंग मलिकार्जुन नाम से प्रसिद्ध है। शिवरात्रि के पर्व पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है।

इस मलिकार्जुन शिवलिंग और तीर्थ क्षेत्र की पुराणों में अत्याधिक महिमा बताई गई है। यहां आकर शिवलिंग का दर्शन पूजन अर्चन करने वाले भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। उनकी भगवान शिव के चरणों में स्थिर प्रीति हो जाती है।

दैहिक दैविक भौतिक सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं। भगवान शिव की भक्ति मनुष्य को मोक्ष के मार्ग पर ले जाने वाली है।

5:बाबा बैद्यनाथ मंदिर | baba baidyanath temple

बाबा बैजनाथ मंदिर है जो कि 12 ज्योतिर्लिंगों की सूची में भी आता है इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण दशानन यानी रावण द्वारा ही किया गया था |यह ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान शिव ने अपने हाथों से रावण के हाथों में सौंपा था और जब वह यह ज्योतिर्लिंग लेकर चल रहा था रास्ते में लघुशंका लगने के कारण उसे व्यक्ति पर रखना पड़ा| 

भगवान शिव ने पहले ही सूचित किया था कि अगर वह ज्योतिर्लिंग धरती पर रख दिया वही हो जाएगा और उसे कोई भी सिर खिला नहीं सकता| माना जाता है कि पहली पूजा जमीन पर रखने के बाद स्वयं दशानन रावण ने ही की थी| जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे बहुत से वरदान दिए थे|

झारखंड के देवघर में स्थित एक स्थान है जिसका नाम है बाबा बैद्यनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है साथ ही साथ इसी के पास ही सभी शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माता सती का वहां पर स्थित है उस पेड़ का नाम है हार्दिक इस मंदिर का एसीपी कार भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया है इसकी पहली कुल संरचना 1496 ईस्वी में की गई थी

महाशिवरात्रि सावन के महीने में हजारों लाखों श्रद्धालु आते हैं और बाबा की पूजा करते हैं उनसे असीम कृपा और अनुकंपा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं प्रतिदिन मंदिर में 4:00 बजे से 3:30 बजे तक और शाम 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक खुला रहता है यानी सुबह 4:00 बजे से लेकर रात के 9:00 बजे तक खुला रहता है|

72 फीट लंबा है यहां पर प्राचीन मूर्तियां देखने को मिलती है और विभिन्न देवी देवताओं की आकृति शर्मा द्वारा यहां पर निर्माण किया गया था इस द्वार के तीन भाग हैं मुख्य मंदिर मंदिर का मध्य भाग और प्रवेश द्वार गर्भ गृह में शिवलिंग स्थित है स्थित है|

6 : भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग | Bhimashankar Jyotirling

ग्राम भीमाशंकर तहसील खेर जिले में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग। पुणे (महाराष्ट्र)भीमाशंकर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक, भारत के महाराष्ट्र में खेड़ से 50 किमी उत्तर-पश्चिम में भवगिरि (भोरगिरि) गांव में स्थित है।
 
भीमाशंकर शिव मंदिर सह्याद्री पहाड़ियों (सहयाद्री पर्वतमाला) के घाट क्षेत्र में पुणे से लगभग 110 किमी दूर है।मंदिर भीमा नदी के तट पर स्थित है, यहीं से भीमा नदी दक्षिण पूर्व की ओर बहती है और रायचूर के पास कृष्णा नदी में मिल जाती है।

भीम शंकर भाई स्थान है जहां पर भगवान शिव ने एक राक्षस का वध करा था जो होली के अनन्य भक्त को प्रताड़ित कर रहा था| भगवान शिव समय शिवलिंग से प्रकट होकर उसका नाश करा था| वह राक्षस भगवान शिव  के पावन शिवलिंग को तोड़ना चाहता है इसे क्रोधित होकर भगवान शिव ने उसे मृत्युदंड दिया था
 
भीमा शंकर मंदिर से किलों, नदियों और आसपास के हिल स्टेशनों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है|

7: रामेश्वर ज्योतिर्लिंग | Rameshwar Jyotirling

रामेश्वर ज्योतिर्लिंग वह है जो व्यक्ति के सभी भाग तक छह करने के लिए समर्थ है| इस ज्योतिर्लिंग को स्वयं भगवान राम ने राम अवतार में  समुद्र के तट पर स्थित किया था| जब लंका के लिए आक्रमण करने जा रहे थे तो उन्होंने भगवान शिव की आराधना अथवा पूजा की थी  उनसे अपनी जीत का वर मांगा था| यह रामेश्वर ज्योतिर्लिंग ब्रह्महत्या अथवा ब्रह्म हत्या के दोष को नाश करने में समर्थ है |

रामेश्वरम जिले में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग। रामनाथपुरम (तमिलनाडु)ज्योतिर्लिंगम की पूजा भगवान राम ने रावण की हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए की थी। भगवान राम की पूजा के लिए हनुमान कैलाश से लिंग लाने के लिए उड़े।

जैसे-जैसे देर हो रही थी, राम ने सीता देवी द्वारा रेत से बने लिंगम की पूजा की। भगवान राम द्वारा पूजे गए इस लिंगम को रामनाथर के नाम से जाना जाता है।

8: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग | Nageshwar Jyotirling

 नागेश्वर (द्वारका) जिले में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग। जामनगर (गुजरात) गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर द्वारका शहर और पश्चिम द्वारका द्वीप के बीच मार्ग पर स्थित यह महत्वपूर्ण भगवान शिव मंदिर है।
 
यह एक भूमिगत गर्भगृह में दुनिया के 12 स्वयंभू (स्वयं विद्यमान) ज्योतिर्लिंगों में से एक द्वारा प्रतिष्ठित है।
 
बैठे हुए भगवान शिव की 25 मीटर ऊंची मूर्ति और तालाब के साथ एक बड़ा बगीचा इस शांत जगह के प्रमुख आकर्षण हैं। कुछ पुरातात्विक उत्खनन स्थल पर पहले के पांच शहरों का दावा करते हैं।
 
नागेश्वर को 'दारुकवण' के नाम से जाना जाता था, जो भारत में एक जंगल का एक प्राचीन महाकाव्य नाम है। नीचे इस रहस्यमय मंदिर से जुड़ी दो प्रसिद्ध किंवदंतियाँ हैं।

9: श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग | Shree Vishwanath jyotivling

यह ज्योतिर्लिंग उत्तर भारत की प्रसिद्ध नगरी काशी में स्थित है। नगरी का प्रलय काल में भी लोग नहीं होता। उस समय भगवान अपनी मातृभूमि इस पवित्र नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं।  और सृष्टि कॉल आने पर पुण्य यथा स्थान रख देते हैं। सृष्टि के आदि स्थली भी इस नगरी को बताया जाता है।

भगवान विष्णु ने स्थान पर 60 कामना से तपस्या करने पर भगवान शिवजी को प्रसन्न किया था। अगस्त्यमुनि ने भी इस स्थान पर अपने तपस्या द्वारा भगवान शिव को संतुष्ट किया था।

इस पवित्र नगरी की महिमा ऐसी है कि यहां जो भी प्राणी अपने प्राण त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शंकर उसके कान में तारक मंत्र का प्रदेश करते हैं इस मंत्र के प्रभाव से पापी से पापी प्राणी व्हिच सहजीवन सागर की बाधाओं से पार हो जाता है।

विश्व में अशक्त अर्ध निर्मित व्यक्ति भी यदि इसका क्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त  हो तो उसे भी पुण्य संसार के बंधनों में आ नहीं आना पड़ता। मत्स्य पुराण में इस नगरी का महत्व बताते हुए कहा गया है

जब ध्यान और ज्ञान रहित तथा दुखों में पीड़ित मनुष्य के लिए काशी ही एकमात्र परम गति है। श्री विश्वेश्वर के आनंद कानों में दशा में वेद लोलार्क विंध्य माधव केशव और मणिकर्णिका यह पांच प्रधान तीर्थ है। kashi vishwanath mandir

इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इस परम पवित्र नगरी के उत्तर की तरफ ओंकार खंड दक्षिण में केदारखंड और बीच में विश्वेश्वर खंड है। प्रसिद्ध विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग इसी खंड में अवस्थित है। पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग संबंध में यह कथा  दी गई।

भगवान शंकर पार्वती जी का पानी ग्रहण करके कैलाश पर्वत पर रह रहे थे लेकिन वहां पिता के घर में ही विवाहित जीवन बिताने पार्वती जी को अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने भगवान शिव से कहा आप मुझे अपने घर ले चलिए यहां रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। सारी लड़कियां शादी के बाद अपने पति को घर जाती है मुझे पता के घर में ही रहना पड़ रहा है।

भगवान शिव ने उनके यह बात स्वीकार कर ली वह माता पार्वती जी के साथ लेकर अपनी पवित्र नगरी काशी में आ गए। यहां आकर भी विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। शास्त्रों में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा निर्धन कुछ सालों में किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन द्वारा मनुष्य समस्त पापों तत्वों से छुटकारा पा जाता है।

प्रतिदिन नियम से श्री बेणेश्वर के दर्शन करने वाले भक्तों के योग क्षेम  समस्त भार भूत भावन भगवान शंकर अपने ऊपर ले लेते हैं। ऐसा भक्त उनके परमधाम अधिकारी बन जाता है। भगवान शिव जी की कृपा से उस पर सदैव बनी रहती है। रोग शोक दुख देने उसके पास भूल कर भी नहीं आते।

10: Triyambak Jyotivling | त्रियम्बक ज्योतिर्लिंग

नासिक (महाराष्ट्र) में त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर - महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे भारत के पवित्र स्थानों में से एक नासिक के पास है।त्र्यंबकेश्वर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।यह कहता है कि जो कोई भी त्र्यंबकेश्वर के दर्शन करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।त्र्यंबकेश्वर के समान कोई पवित्र स्थान नहीं है, गोदावरी के समान कोई नदी नहीं है, ब्रह्मगिरि के समान कोई पर्वत नहीं है।
 
इसके इतने पवित्र होने के कारण हैं - गोदावरी नदी का उद्गम इसी स्थान से होता है, यह त्रि-संध्या गायत्री का स्थान है।
 
भगवान गणेश का जन्म स्थान, गोरखनाथ और अन्य नाथ सम्प्रदाय के पहले नाथ का स्थान, एक ऐसा स्थान जहाँ निवृत्तिनाथ को उनके गुरु गहिनीनाथ ने पवित्र ज्ञान ग्रहण करने के लिए बनाया था, एक ऐसा स्थान जहाँ निवृत्तिनाथ ने अपने भाइयों और बहन को आत्मज्ञान कराया था उनके उपदेश से।

11: श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग | Shree kedarnath jyotiligam

पुराणों एवं शास्त्रों में श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन बारंबार किया गया है। यह ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर अवस्थित है। यहां की प्राकृतिक शोभा देखते ही बनती है। स्कूटी के पश्चिम भाग में पुण्य मति मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारेश्वर महादेव का मंदिर अपने स्वरूप में ही हमें धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ने का संदेश देता है।

चोटी के पूर्व में अलकनंदा के सुर में तत्पर बद्रीनाथ का परम प्रसिद्ध मंदिर है। अलकनंदा और मंदाकिनी यह दोनों नदियां नीचे रुद्रप्रयाग में आकर मिल जाती है। दोनों नदियों की यह संयुक्त धारा और नीचे देवप्रयाग में आकर भागीरथी  गंगा से मिल जाती है।

इस प्रकार परम पावन गंगा जी में स्नान करने वालों को भी श्री केदारेश्वर और बद्रीनाथ के चरणों को धोने वाले जल का स्पर्श सुलभ हो जाता है नमः शिवाय। इस अति पवित्र पुण्य फलदाई ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विश्व में प्राणों में यह कथा दी गई है।

अनंत रत्नों के जनक अतिशय पवित्र तपस्वी वृक्षों से  देवताओं की निवास भूमि पर्वतराज हिमालय के केदार नामक अत्यंत सौभाग्यशाली श्रृंगार पुर महत्त्व श्री श्री नर और नारायण ने बहुत वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की।

कई हजार वर्षों तक में निराहार रहकर एक पैर पर खड़े होकर शिव नाम का जप करते रहे। इस तपस्या से सारे लोगों में उनकी चर्चा होने लगी। देवता ऋषि मुनि या फिर अंदर सभी उनकी साधना और संयम की प्रशंसा करने लगे। चराचर के पिता ब्रह्मा जी और सब का पालन पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी महत्व पर सभी नर नारायण के तब की भूरी भूरी प्रशंसा करने लगे। अंत में अवधानी भूत भावन भगवान शंकर जी भी उनकी उस कठिन साधना से प्रसन्न होते। उन्होंने प्रत्यक्ष प्रकट होकर दोनों राशियों का दर्शन दिया।

नर और नारायण भगवान भोलेनाथ के दर्शन से भाग हीर और आनंद विभोर होकर बहुत प्रकार पवित्र स्थितियां और मंत्र से उनकी पूजा अर्चना की। राजीव जी ने अत्यंत प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने की कहा। भगवान शिव जी का यह बात सुनकर उन दोनों ऋषि यों ने उनसे कहा।

देवा दी देव महादेव यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो भक्तों के कल्याण हेतु आप सदा सर्वदा के लिए अपने स्वरूप यहां स्थापित करने की कृपा करें। आपकी हर बात करने से स्थान सभी प्रकार से अत्यंत पवित्र हो उठेगा।kedarnath mandir

यहां आकर भक्ति करने वाले मनुष्य को आपकी अविनाशी भक्ति प्राप्त हुआ करेगी। प्रभु आप मनुष्य के कल्याण और उनके उद्धार के लिए अपने स्वरूप को यहां स्थापित करने की हमारी प्रार्थना अवश्य स्वीकार करें।

उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में भावास करना स्वीकार किया। केदार नामक हिमालय सिंगारपुर उपस्थित होने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

भगवान शिव जी सेवर मांगते हुए नारायण नारायण ने इस ज्योतिर्लिंग और इस पवित्र स्थान के विषय में जो कुछ कहा है।

वह सत्य है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन तथा यहां स्नान करने से भक्तों की लोकगीत पलवल फलों की प्राप्ति होने के साथ-साथ आंचल शिव भक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।

12 : घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग | ghushmeshwar jyotirlinga

एलोरा जिले के पास घ्रुष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग ग्राम वेरुल। औरंगाबाद (महाराष्ट्र)।घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भारत के प्राचीन और पवित्रतम तीर्थस्थलों में से एक है।यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक का पवित्र निवास स्थान है।
 
यह मंदिर महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास दौलताबाद से 11 किमी की दूरी पर स्थित है।दौलताबाद को कभी देवगिरी के नाम से जाना जाता था। अहिल्याभाई होल्कर ने घृष्णेश्वर मंदिर का निर्माण किया, जिन्होंने बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर और गया में विष्णु पाड़ा मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया।

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