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श्री हनुमानद्वादशनाम स्तोत्रम् | Hanuman Dwadash Naam Stotram

श्री हनुमानद्वादशनाम स्तोत्रम् | Hanuman Dwadash Naam Stotram :->इस स्तुति में भगवान आञ्जनेय ( श्री हनुमान जी) के 12 नाम हैं। इसके प्रतिदिन ११ बार नियमित जप से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं तथा इन सभी नामों से हनुमानजी की शक्तियों तथा गुणों का बोध होता है।

श्री हनुमानद्वादशनाम स्तोत्रम् | Hanuman Dwadash Naam Stotram

साथ ही भगवान राम के प्रति उनकी सेवा भक्ति भी स्पष्ट दिखाई देती है। इसी कारण इन नामों के जप से पवनपुत्र बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं ॥

दीर्घायु पाने के लिए
रोजाना सुबह सोकर उठने के साथ ही बिस्तर पर बैठे-बैठे इन बारह नामों को ग्यारह बार बिना रूके उच्‍चारण करने से आप दीर्घायु होंगे. इसके अलावा आपके ऊपर आने वाली शारीरिक समस्याओं का भी निदान होगा.

धनवान बने रहने के लिए
हनुमान के इन नामों की महिमा वैसे तो अनंत है, लेकिन दोपहर के समय अपने ऑफिस, घर या दुकान में बैठकर भी इन बारह नामों का स्मरण करने वाले भक्त के जीवन में पैसे की कोई कमी नहीं रहती. इसके अलावा रूका हुआ धन वापस मिलता है और हनुमान के ये बारह नाम कर्ज से भी मुक्ति दिलाते हैं.

खत्‍म कर देते हैं गृह क्‍लेश
चाहे स्त्री हो या पुरूष यदि उसके जीवन में पारिवारिक क्लेश रहता है. ऐसे लोग यदि महावीर के इन बारह नामों का जाप संध्याकाल में करते हैं तो उनके परिवार में सुख शांति बनी रहती है.

भय और शत्रु से करते हैं रक्षा
यदि आपके जीवन में ज्ञात-अज्ञात भय बना रहता है या आपके शत्रु आप पर हावी हो रहे हैं तो ऐसे में आपके लिए संजीवनी बूटी का काम करेंगे हनुमान जी के ये बारह नाम. ऐसे लोगों को रात को सोने से पहले इन बारह नामों का जाप करना चाहिए. हनुमान के इन बारह नामों का नियमित रूप से जाप करने से उनकी कृपा आपके ऊपर रूप विशेष से बनी रहती है.

हनुमानञ्जनासूनुर्वायुपुत्रो महाबल: ।
रामेष्ट: फलगुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम: ॥

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥

एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन: ।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत् ॥

तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भेवत् ।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन ॥

हनुमानजी के 12 नाम:
1- हनुमान
2 – अंजनिपुत्र
3 – वायुपुत्र
4 – महाबल
5 – रामेष्ट
6 – फाल्गुनसखा
7 – पिंगाक्ष
8 – अमितविक्रम
9 – उदधिक्रमण
10 – सीताशोकविनाशन
11 – लक्ष्मणप्राणदाता
12 – दशग्रीवस्य दर्पहा

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