श्री मश्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|| Shree Mahakleshwar jyotirlinga:-> यह परम पवित्र ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में है। पुण्य सलिला शिप्रा शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित या उज्जैन प्राचीन काल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था। इसे अवंतिकापुरी भी कहते हैं। यह भारत की परम पवित्र स्थानों में से एक है
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग|| Shree Mahakleshwar jyotirlinga|| mahakaleshwar mandir
इस ज्योतिर्लिंग की कथा पुराणों में इस प्रकार बताई गई है। प्राचीन काल में उज्जैन में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे। वह परम शिव भक्त थे। 1 दिन फ्री कर नामक एक 5 वर्ष का गोत बालक अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था।
राजा का शिवपूजन देकर उसे बहुत विश्व में और कुतूहल हुआ। वे स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिव पूजन करने के लिए लालता हो उठा।
सामग्री का साधन ना टूट पाने पर लौटते समय उसने रास्ते में एक पत्थर का टुकड़ा उठा लिया। आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प चंदन आदि से परम श्रद्धा पूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माता भोजन करने के लिए बुला ले आई। किंतु वह पूजा छोड़कर उठने के लिए किसी प्रकार भी तैयार नहीं हुआ।
अंत में माता ने जलाकर पत्थर का टुकड़ा उठाकर दूर फेंक दिया। इससे बहुत ही दुखी होकर में बालक जोर-जोर से भगवान शिव को पकड़ता हुआ रोने लगा। रोते-रोते अंत में बेहोश होकर वह वहीं गिर पड़ा।
बालक की अपने प्रति या भक्ति और प्रेम देखकर आशुतोष भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो गए। बालक ने यूं ही होश में आकर अपने नेत्र खोले तो उसने देखा कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य अति विशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है।
कुछ मंदिर के भीतर एक बहुत ही प्रकाश पूर्णमासी व्रत तेजस्वी ज्योतिर्लिंग खड़ा है। बच्चा प्रसाद था और अलग से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा। माता को जब यह समाचार मिला था वह दौड़ कर उसने अपने प्यारे लाल को गले से लगा लिया।
पीछे राजा चंद्रसेन ने भी वहां पहुंच कर उस बच्चे की भक्ति और सिद्धि की बड़ी सराहना की। धीरे-धीरे वह बड़ी भीड़ जुट गई। इतने में उस स्थान पर हनुमान जी प्रकट हो गए हैं। उन्होंने कहा मनुष्य भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम है।
इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है जो बड़े-बड़े ऋषि मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर सकते। इस ग्रुप बालक की आठवीं पीढ़ी में धर्मात्मा नंद गोप का जन्म होगा। द्वापर युग में भगवान विष्णु कृष्ण अवतार लेकर उनके बाद तरह-तरह की लीला करेंगे।
हनुमान जी इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए उस स्थान पर नियम से भगवान शिव की आराधना करते हुए अंत में श्री कर गोप और राजा चंद्रसेन शिवधाम को चले गए। इस ज्योतिर्लिंग के विश्व में एक दूसरी कथा इस प्रकार कही जाती है। किसी समय अवंतिकापुरी में वेद पाठी तपो लिस्ट एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे।
1 दिन दूषण नामक एक अत्याचारी पर्सनल की तपस्या में विघ्न डालने के लिए वहां आया। ब्रह्मा जी के बरसे वह बहुत शक्तिशाली हो गया था।
उसके अत्याचारों से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। ब्राह्मण को कष्ट में पड़ा देखकर प्राणी मात्र का कल्याण करने वाले भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए।
उन्होंने एक हुंकार मात्र से उसे दारुण अत्याचारी दानवों को वही जलाकर भस्म कर दिया। भगवान महा हुंकार सहित प्रकट हुए इसलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। इसलिए इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंग महाकाल के नाम से जाना जाता है।
महाभारत शिव पुराण एवं स्कंध प्राणों में इस ज्योतिर्लिंग महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है।