एक बार रूप गोस्वामी जी राधाकुंड के किनारे बैठकर ग्रन्थ लेखन में इतने खो गए कि उन्हें ध्यान ही न रहा कि सूरज ठीक सिर के ऊपर आ गए हैं| झुलसाती गर्मी के दिन थे किन्तु रूप गोस्वामी जी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था वह निरंतर लिखते ही जा रहे थे।
दूर से आते हुए श्रील सनातन गोस्वामी जी ने देखा कि रूप भाव मग्न होकर लेखन कर रहे हैं एवं एक नवयुवती उनके पीछे खडी हो कर अपनी चुनरी से रूप गोस्वामी जी को छाया किये हुए है।
सनातन गोस्वामी जी जैसे ही निकट पहुंचे तो देखा कि वह नवयुवती तपाये हुए सोने के रंग की एवं इतनी सुन्दर थी कि माता लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की सुन्दरता को मिला दिया जाये तो इस नवयुवती की सुन्दरता के समक्ष तुच्छ जान पड़ते।
वह नवयुवती सनातन की ओर देख कर मुस्कुराई और अन्तर्धान हो गई।सनातन गोस्वामी जी ने रूप को डांटा और कहा तुम्हें तनिक भी ध्यान है कि तुम क्या कर रहे हो?
हम लोग भगवान् के सेवक हैं और सेवक का काम है स्वामी की सेवा करना ना कि स्वामी से सेवा स्वीकार करना।
अतः तुम इस प्रकार श्रीमती राधारानी से सेवा कैसे सेवा करवा सकते हो,
आज ही तुम अपने लिए एक कुटिया बनाओ ताकि दुबारा श्रीराधारानी को तुम्हारी वजह से कष्ट ना उठाना पड़े।
भक्तों की प्यारी राधा
श्री राधा श्री राधा..जय जय श्री राधे
राधा नाम की महिमा| Radha Naam ki Mahima