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Pitru paksha : पितरों की पूजा और श्राद्ध का महत्व

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Pitru paksha :-> पितृ पक्ष, जिसे अकाल मृत्यु से भी जाना जाता है, हिन्दू पंचांग (कैलेंडर) के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाला पक्ष होता है। इस पक्ष की अवधि प्रायः 15 दिनों तक चलती है। यह अवसर पितृ पूजा और श्राद्ध के रूप में मनाया जाता है और पितृगणों की पूजा के लिए महत्वपूर्ण होता है।

Pitru paksha

पितृ पक्ष का महत्व (Importance of pitru Paksh):

  • पितृ तर्पण (श्राद्ध)(Pitru tarpan): पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजन्म के पितरों की पूजा और तर्पण करते हैं। इसका मकसद होता है उन्हें आत्मिक शांति प्रदान करना और उनकी आत्मा को शांति दिलाना।
  • कर्मों का फल (Karmo Ka Fal): पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध और तर्पण से मानव अपने कर्मों के फल को स्वीकार करता है और उनकी पितृगणों की कृपा को प्राप्त करता है।
  • परंपरा और संबंध (Prampra aur sambad): पितृ पक्ष के अवसर पर परिवार के लोग एक साथ आकर्षित होते हैं और परंपरागत रूप से पितृ पूजा और तर्पण का आयोजन करते हैं। यह संबंधों को मजबूत करता है और परिवार के सदस्यों के बीच साजीवन संबंध बनाता है।
  • मातृगणों की पूजा (matrigun ki puja) : इस पक्ष के दौरान, मातृ पूजा भी की जाती है, जिसमें माताओं को भी प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है और उन्हें आशीर्वाद दिलाया जाता है।

पितृ पक्ष में नहीं करना चाहिए (what not to do in pitru paksh):

  1. नमक और अजीनोमोटो का सेवन (Namak aur ajinomoto ka sewan) : पितृ पक्ष में नमक और अजीनोमोटो जैसे उन्नत नमकों का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रती को सेंधा नमक या व्रत के नमक का प्रयोग करना चाहिए।
  2. पुराने कपड़े पहनना (Purane kapde pehnne): व्रती को पुराने या फाड़े हुए कपड़े पहनना नहीं चाहिए। यह समझा जाता है कि इससे पितृगण आपके पास आते हैं और वह आपके खास कपड़ों में आस्था रखते हैं।
  3. गोमूत्र और गोबर का स्पर्श (Gomutr aur gobar ka sparsh): व्रती को गौमूत्र और गोबर का स्पर्श नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसे पावन माना जाता है और इसका संबंध पितृ पूजा से नहीं होता।

पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और यह पितृगणों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण होता है।

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