ऐसा प्राचीन मान्यता है कि जहां जहां राम कथा होती है वह हनुमान जी स्वयं सुनने के लिए पहुंच जाते हैं| यह उनकी श्रीराम के लिए अटूट भक्ति का प्रमाण है|
ईश्वर की भक्ति के लिए आध्यात्मिक सिद्धांतों पर 9 विधियों का विधान है इसे नवधा भक्ति का सिद्धांत भी कहा जाता है| इस विधान में दास्य से भक्ति का एक प्रमुख माध्यम है| दास्य भक्ति के सबसे बड़े प्रतिनिधि भक्त हनुमान हैं|
राम भक्त हनुमान के अविभार्व की कथा अत्यंत रोचक है| भगवान विष्णु की मोहिनी माया तथा भगवान शिव की भक्ति की सम्मिलित ऊर्जा से जो ज्योति निकली है उसे पवन देवता की सहायता से माता अंजनी तथा पिता के जी के घर में स्थापित करने से हनुमान का धरती पर अविभार्व हुआ है |
इस प्रकार यज्ञ की देन के रूप में उनका अवतार राम भक्ति के लिए धरती पर हुआ बताया जाता है साथ ही शिव के अंश तथा पवन के रूप में उनकी प्रतिष्ठा है|
हनुमान जन्म से ही महाबल 40 है बचपन में उगते हुए सूरज को फल समझकर उसे खाने के लिए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए सूर्य की और उड़ने की कथा का वर्णन मिलता है| वह सूर्य ग्रहण का समय था राहु सूर्य को ग्रसित करने की तैयारी कर रहा था कि एक बालक को सूर्य की ओर उड़ने की कथा का वर्णन मिलता है|
हनुमान जी सूर्य की तरफ जब उड़ चले ;-
वह सूर्य ग्रहण का समय था| राहु सूर्य को ग्रसित करने की तैयारी कर रहा था कि एक बालक को सूर्य की ओर बढ़ते देख क्रोधित हो गया उसने हनुमान को रोकने के लिए आक्रमण किया| लेकिन शिशु हनुमान के एक दूसरे से मैदान छोड़ भाग खड़ा हुआ राहु सीधे इंद्र के पास पहुंचा सारी बात सुनकर इंद्र विकृत हुआ और ऐरावत पर सवार होकर राहु की सहायता हेतु वहां पहुंच गया|
इंद्र ने रावत को सबसे पहले भेजा ताकि हनुमान को बंदी बनाया जाए परंतु हनुमान ने रावत को प्राप्त कर दिया| तब इंद्र आगे आए और अपने ब्रिज से शिशु हनुमान पर प्रहार किया जिस ब्रज के प्रहार से बड़े-बड़े महारथी भी प्राण त्याग देते हैं उसे प्रहार को एक बालक कैसे खेल पाता बाल हनुमान मूर्छित हो गया| चोट लगने से उनकी छुट्टी अर्थात सानू टेडी हो गई| इसी कारण से वह हनुमान के नाम से लोकप्रिय हुए|
सूर्य देव ने हनुमान जी के गुरु :-
पवन देव के आशीर्वाद से बड़े होने पर उन्हें सूर्यदेव से भी तथा अन्य शास्त्रों की शिक्षा मिली | सूर्य देव ने उन्हें कविराज गरीब के सचिव का दायित्व निभाने का निर्देश दिया जंगलों में भटकते हुए सुग्रीव की सेवा करते समय श्रीराम से उनकी भेंट हुई उनसे परामर्श लेकर ही सदरीफन राज बना| उनकी हरीभक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए राज दरबार में एक बार श्री राम के हनुमान को अपने गले से मोती की माला उतार कर दी| हनुमान ने हर एक मूर्ति को दांत से काटकर देखा कि उसमें राम है या नहीं|
यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि एक सच्चे राम भक्तों को विलासिता में राम भक्ति दृष्टिगोचर नहीं हो सकती| राम ने हनुमान से पूछा कि तुमने इतने सुंदर माला को पहनने के बजाय दांत से काट काट कर क्यों फेंक दिया?
इस पर हनुमान जी ने कहा प्रभु जिस वस्तु में मुझे आप और आपकी भक्ति नजर नहीं आती मैं उसका प्रयोग नहीं करता हूं|
देखा कि मोतियों में आपका नाम नहीं है तथा यह माला मेरे किसी काम की नहीं| तब श्रीराम ने पूछा क्या तुम्हारे हृदय में भी राम का निवास है|
अगर हां तो सभी को दिखाओ महावीर ने अपना सीना चीर कर देखा कि उसमें राम लक्ष्मण सीता विद्यमान है| कहते हैं कि यहां राम कथा होती है जहां राम नाम का कीर्तन होता है हनुमान जी वहां उपस्थित रहते हैं सच्चे हरि भक्तों के यही उनका निवास है|
हरि कथा सुनने वालों की सभा में सबसे पीछे बैठकर में राम कथा का आनंद लेते हैं परंतु वहां उनकी उपस्थिति देखी नहीं वर्णन नहीं की जा सकती वह सिर्फ अनुभव ही की जा सकती है|
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