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माँ जीण शक्ति मंगल पाठ | Jeen Mata Shakti Mangal Paath

माँ जीण शक्ति मंगल पाठ | Jeen Mata Shakti Mangal Paath :->नवरात्रो में जीन भवानी भंवरा वाली का मंगल पथ घर बैठे करे JEEN MATA MANGAL PATH

माँ जीण शक्ति मंगल पाठ | Jeen Mata Shakti Mangal Paath

विध्न हरण मंगल करण गौरी सुत गणराज
कण्ठ विराजो शारदा आन बचाओ लाज
मात पिता गुरुदेव के धरूँ चरण में ध्यान
कुलदेवी माँ जीण भवानी लाखो लाख प्रणाम


: प्रथम अध्याय :
चौपाई
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा 1 1
आदि शक्ति माँ जीण भवानी महिमा माँ की किसने जानी
मंगल पाठ करूं मै तेरा करो कृपा माँ जीण भवानी 2
साँझ सवेरे तुझे मनाऊँ चरणों में मै शीश नवाऊँ
तेरी दया से भंवरावाली मै अपना संसार चलाऊँ 3
हर्ष नाथ की बहना प्यारी जीवण बाई नाम तुम्हारा
गोरियां गाँव से दक्षिण में है सुन्दर प्यारा धाम तुम्हारा 4
पुरब मुख मंदिर है प्यारा भंवरावाली मात तुम्हारा
तीन ओर से पर्वत माला साँचा है दरबार तुम्हारा 5
अष्ट भुजाये मात तुम्हारी मुखमंडल पर तेज निराला
अखंड ज्योति बरसों से जलती जीण भवानी हे प्रतिपाला 6
एक धृत और दो है तेल के तीन दीप हर पल है जलते
मुगल काल के पहले से ही ज्योति अखंड है तीनो जलते 7
अष्टम् सदी में मात तुम्हारे मन्दिर का निर्माण हुआ है
भगतों की श्रदा और निष्ठा का जीवन्त प्रमाण हुआ है 8
देवालय की छते दीवारें कारीगरी का है इक दर्पण
तंत्र तपस्वी वाममार्गी के चित्रों का अनुपम चित्रण 9
शीतल जल के अमृत से दो कलकल करते झरने बहते
एक कुण्ड है इसी भूमि पर जोगरवार ताल सब कहते 10
देश निकाला मिला जो उनको पाण्डु पुत्र यहाँ पर आये
इसी धरा पर कुछ दिन रहकर वो अपना बनवास बिताये 11
बड़े बड़े बलशाली भी माँ आकर दर पे शीश झुकाये
गर्व करे जो तेरे आगे पल भर में वो मुँह की खाये 12
मुगलो ने जब करी चढ़ाई लाखो लाखो भँवरे छोड़े
छिन्न विछिन्न किये सेना को मुगलो के अभिमान को तोड़े 13
नंगे पैरों तेरे दर पे चल के ओरंगजेब था आया
अखंड ज्योत की रीत चलाई चरणों में माँ शीश नवाया 14
सूर्य उपासक जगदेव जी राज नवलगढ़ में करते थे
भंवरावाली माँ की पूजा रोज नियम से वो करते थे 15
अपनी दोनों रानी के संग देश निकाला मिला था उनको
पहुँच गये कन्नौज नगर में जयचंद ने वहाँ शरण दी उनको 16
कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले काली ने हुँकार भरी थी
भंवरावाली बन कंकाली दान लेने को निकल पड़ी थी 17
सारी प्रजा के हित की खातिर जगदेव ने शीश दिया था
शीश उतार के कंकाली के श्री चरणों में चढ़ा दिया था 18
भंवरावाली की कृपा से जीवन उसने सफल बनाया
माता के चरणों में विराजे शीश का दानी वो कहलाया 19
सुन्दर नगरी जीण तुम्हारी सूंदर तेरा भवन निराला
यहाँ बने विश्राम गृहो में कुण्डी लगे लगे न ताला 20
करुणामयी माँ जीण भवानी जो भी तेरे धाम न आया
चाहे देखा हो जग सारा जीवन उसने व्यर्थ गवांया 21
आदिकाल से ही भक्तो ने वैष्णो रूप में माँ को ध्याया
वैष्णो देवी जीण भवानी की है सारे जग में माया 22
दुर्गा रूप में देवी माँ ने महिषासुर का वध किया था
काली रूप में सब देवो ने जीण का फिर आह्ववान किया था 23
सभी देवताओं ने मिलकर काली रूप में माँ को ध्याया
अपने हाथो से सुरगण ने माँ को मदिरा पान कराया 24
वर्तमान में वैष्णो रूप में माँ को ध्याये ये जग सारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 25
दोहा
सिद्ध पीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
दिर्तीय अध्याय जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
माला बाबा अर्चन पूजा मात जयन्ति की करते थे
पाराशर ब्राह्मण कुल- वंशी देवी की सेवा करते थे 26
माला बाबा के सेवा काल में वाममार्गी यहाँ पर आये
अखण्ड धूनी सिद्धपीठ के निकट में ही चालू करवाये 27
कई वर्षो तक वाममार्गी जीण धाम में समय बिताये
पूरी सम्प्रदाय के महन्त जी उन सब के सरदार कहाये 28
जीण धाम से वाममार्गी कालान्तर में कूच किये थे
जाते हुये माला बाबा को अखण्ड धूनी सौप गये थे 29
कपिल मुनि भी उसी काल में जीण धाम में आन पधारे
घोर तपस्या करी वहाँ पर पर्वत से निकले जल धारे 30
कपल धार की वह जलधारा कुण्ड रूप में आज विराजे
उसी कुण्ड के जल से पुजारी मैया को स्नान कराते 31
आदिकाल की सच्ची घटना भक्तो तुमको आज बताऊ
जीवण बाई हर्ष नाथ के जीवन का वृत्तान्त सुनाऊँ 32
राजस्थान के जिला चुरू में धांघु नामक एक ग्राम था
चौहानों के ठाकुर राजा गंगो सिंह का वहाँ राज था 33
माला पुजारी को दर्शन दे मात जयन्ति एक दिन बोली
जीण रूप में मै प्रगटूँगी उनसे सच्चा भेद ये खोली 34
जीवण बाई नाम की कन्या गंगो सिंह के घर जन्मेगी
मेरी शक्ति से कलयुग में घर घर उसकी पूजा होगी 35
एक दिन राजा गंगो सिंह जी खेलन को शिकार गये थे
वहाँ लोहागर जी के पास में परी से नेना चार हुये थे 36
सुंदरता से मंत्र मुग्ध हो गंगो सिंह जी परी से बोले
शादी करना चाहूँ तुमसे तू मेरी अर्धागिनी होले 37
परी ये बोली सुनो हे राजा मुझसे मेरा भेद न लेना
अगर भेद की बात करोगे फिर पीछे तुम मत पछताना 38
शर्त ये मेरी ध्यान से सुन लो जब भी मेरे कक्ष में आओ
अंदर आने से पहले ही शयन कक्ष को तुम खटकाओ 39
शर्त मान कर गंगो सिंह ने परी के संग में ब्याह रचाया
प्रेम और विश्वास के बल पे अपना जीवन रथ चलाया 40
परी की कोख से जीवण बाई हर्ष नाथ दोनों थे जन्मे
बड़ा प्रेम आपस में रखते भाई बहना अपने मन में 41
मन की कोमल जीवण बाई सच्ची सीधी भोली भाली
हर्ष नाथ ने निज बहना की कोई बात कभी ना टाली 42
एक दिन राजा गंगो सिंह जी परी से मिलने घर में आये
सीधे शयन कक्ष जा पहुँचे बिना दुवार को ही खटकाये 43
शयन कक्ष के अंदर जाकर देख नजारा वो चकराये
परी बनी थी वहाँ सिंहनी गंगो सिंह जी मन में घबराये 44
परी यूँ बोली सुनो हे राजन भेद मेरा तुम जान गये हो
अब तुम मुझसे मिल ना सकोगे वादा अपना भूल गये हो 45
शर्त तोड़कर तुमने राजन वादे का अपमान किया है
इतना कहकर परी ने झटपट इंद्रलोक प्रस्थान किया है 46
कुछ दिन उनके साथ में रहकर गंगो सिंह परलोक सिधारे
बड़े हुये थे फिर वो दोनों बनके इक दूजे के सहारे 47
हर्ष नाथ ने ब्याह रचाया सुन्दर भावज घर में आयी
प्यारी भाभी को पाकर वो मन में फूली नहीं समाई 48
भाई बहन का प्यार अनोखा भाभी को बिलकुल ना भाया
फूट ड़ालने उनके मन में भावज ने एक जाल बिछाया 49
जीण भवानी के उदगम् का सच्चा हाल कहूँ में सारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 50
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कोनसा संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
तृतिय अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
रजपुतो में चुनड़ी का तब ऐसा चलन हुआ था जारी
तीज त्योहारो के अवसर पर चुनड़ी लाय उढाये भाई 51
हर्षनाथ की चुनड़ी देखकर भावज बोली करके बहाना
जीवण को यह बड़ी पसंद है यही चुनड़ी मुझे उढ़ाना 52
भोले भाले हर्षनाथ ने पत्नी की बातो को माना
निज पत्नी की चालाकी से भाई था बिलकुल अनजाना 53
जीवण के संग अगले ही दिन भाभी पानी भरने आई
बातो ही बातो में उसने जीवण को यह बात बताई 54
तुमसे ज्यादा तेरा भाई मुझसे प्रेम करे है जीवण
जीवण को विश्वास ना आया शर्त लगी दोनों में उस क्षण 55
भाभी बोली अमुक चुनड़ी गर वो मुझको आज उढाये
तब तुम नणदल जान ही लेना तुमसे ज्यादा मुझको चाहे 56
होनी तो होकर रहती है दोनों पानी भर कर लाई
घड़ा उतार के हर्षनाथ ने पत्नी को चुनड़ी ओढ़ाई 57
भारी ठेस लगी जीवण को नैनो से बही अश्रु धारा
घड़ा फोड़ दौड़ी घाटी में छुट गया पीछे जग सारा 58
भाई पीछे दौड़ा आया बहना को वो लाख मनाया
लेकिन उसने एक न मानी होनी ने क्या जाल बिछाया 59
अब भैया मै घर नहीं जाती हर्ष नाथ को वो बतलाती
मोहमाया सब छोड़ चुकी हूँ तज दी घर और सखा संघाती 60
पर्वत के ऊपर जीवण ने जाकर इतना नीर बहाया
नेंनो से जो काजल निकला काजल शिखर वहीँ कहलाया 61
शक्ति की फिर घोर तपस्या जीवण भाई करने लागी
हर्षनाथ के मन में भक्तो शंकर जी की भक्ति जागी 62
उलट दिशाओ में मुँह करके धोर तपस्या दोनों ने की
आदिशक्ति माँ भंवरावाली जीवण के सन्मुख आ प्रगटी 63
प्रगट होयकर मात जयन्ति जीवण भाई से यूँ बोली
मेरी लौ तुझमे मिलने से कहलाओगी जीण भवानी 64
घर घर तेरी पूजा होगी बोली माँ भँवरो की रानी
कलयुग में पूजी जाओगी तुम भी बन भँवरो की रानी 65
द्वापर युग में नन्द के घर में इक कन्या ने जन्म लिया था
वसुदेव ने उस कन्या को कृष्ण के बदले बदल दिया था 66
कन्या रूप में मात जयन्ति आठवीं बन सन्तान थी आई
कलयुग में माँ जीण भवानी वहीँ जयन्ती बन कर आई 67
हर्षनाथ ने शिव शंकर को करके तपस्या खूब रिझाया
भोले जी की कृपा से फिर भैरो रूप उन्ही से पाया 68
शंकर जी का भवन निराला हर्ष नाम के पर्वत ऊपर
भैरो हर्ष नाथ का मंदिर बना हुआ है इस भूमि पर 69
सच्ची घटना में बतलाऊँ सच्चा हाल सुनाऊ सारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 70
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
चतुर्थ अध्याय जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
वर्तमान में साक्षात् है विधमान माँ आधी भवानी
शक्ति की कृपा से जीवण कहलाई माँ जीण भवानी 71
शिव पार्वती रूप तुम्हारा दाहिनी और माँलक्ष्मी साजे
बाई तरफ में मात शारदा वीणा वादिनी आप विराजे 72
पाराशर के कुल वंशो को माँ की पूजा का हक़ सारा
जीण भवानी की कृपा से उन सबका चलता है गुजारा 73
सारे जग में एक अकेली तन्त्र भेद की मात भवानी
भक्तो का कल्याण करे है अलबेली भँवरो की रानी 74
चमत्कार है देवी तेरा नमस्कार है मेरा तुझको
दास जानकर अपना माता चरणों में रख लेना मुझको 75
ऊपर काजल शिखर विराजे नीचे भँवरो वाली साजे
बीच में मैया जीण भवानी ड्योढ़ी पे नोबत है बाजे 76
आठों पहर चौबीसों घन्टे खुला रहे ये माँ का द्वारा
नंगे पैरो दौड़ी आई जिसने मन से नाम पुकारा 77
ऐसा है दरबार निराला बिन बोले भक्तो की सुनती
बिन माँगे माँ दे देती हैं भक्तो के कष्टों को हरती 78
निर्धन दर पे दौलत पावे लँगड़ा झटपट दौड़ा आवे
अंधे को आँखे मिल जाती बाँझन पल में बेटा पावे 79
दीन दयालु भंवरावाली भक्तो की करती रखवाली
ये ही दुर्गा ये ही लक्ष्मी ये ही काली खप्पर वाली 80
जग में गुँजे नाम तिहारो भक्तो को लागे अति प्यारा
सबसे प्यारा तेरा द्वारा वैभव इस दुनियाँ से न्यारा 81
मुखमण्डल की आभा भारी अरज करे लाखों नर नारी
भक्तो का कल्याण करें माँ नित की परचा देवे भारी 82
मनसे जो भी नाम पुकारे कट जाती है विपदा सारी
भक्तो के दुखड़े हर लेती विध्न हरण माँ मंगलकारी 83
सवामणी का भोग लगे है सेवक जन गुणगान करे है
शरणागत की लाज रखे माँ भक्तो का उद्धार करे है 84
खीर चूरमा और नारियल हलवा पूड़ी भोग है प्यारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 85
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
पंचम अध्याय जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
पाराशर सारे मिल करके चैत के नवरात्रो के आगे
जीण भवानी का न्योता ले हर्षनाथ के पास में जाते 86
दाल चरमा बाटी की वो सवामणी जाकर करवाते
न्यौता देकर हर्षनाथ को सारे मिलकर रात जागते 87
नवरात्रों में जीण धाम में भारी भीड़ लगेगी भेरों
आकर उसको आप सम्भालो न्यौता तुम माँ का स्वीकारो 88
आशविंन चैत के नोरातो में लगता माँ का मेला भारी
दर्शन माँ का करने आते देश देशावर से नर नारी 89
गठजोड़े से जात लगाये बच्चों माँ मुण्डन करवाये
तरह तरह की मनोकामना चौखट पे पूरी हो जाये 90
नंगे पैरों चल कर आते मन्दिर पे निशान चढ़ाते
भंवरा वाली जीण भवानी मैया की वो किरपा पाते 91
जै जैकार लगाते सारे बच्चे बूढ़े नर और नारी
माता का गुणगान करे है मिल कर के सब बारी बारी 92
हरियाणा के नारनोल से बत्तिसी का संध है आता
षष्ठी शुक्ला चैत में भक्तो लिए मशाल हाथ में आता 93
बारह बजे अध्ररात्रि में इक्कीस सेवक चलकर आते
नंगी तलवारों को थामे सीधे माँ के मंड में जाते 94
तीन पुजारी मंड में उस पल माँ की सेवा में है रहते
धोक लगा चरणों में सारे जाकर अपना शीश झुकाते 95
मंड के पीछे पुजारी मिल के उनको बाना देकर आये
हारी बीमारी में वो बाना पीछे उनकी लाज बचाए 96
महासष्टमी के दिन सेवक माता की फिर रात जागते
मीठे मीठे भाव भक्ति के भजनों की बरसात कराते 97
महा- अष्टमी के दिन सारे चरणों में जा धोक लगाते
माता का वो कर भंडारा खीर चूरमा भोग लगाते 98
कलकत्ता से नवरात्रों में कई समिति दर पर जाती
गोरिया मोड़ से पैदल चल कर माता का निशान चढ़ाती 99
विप्रजनो और कन्याओं के सारे मिलकर चरण धुलाये
बड़े प्रेम और श्रद्धा से फिर उन सबको वो भोज कराते 100
टोले के टोले दर आते मीठे मीठे भजन सुनाते
जय माँ जीण के जयकारों से धरती अम्बर है गुँजाते 101
कहते है माँ नवरात्रों में सबकी इच्छा पूरण करती
दर पे आये हर सेवक की जीण भवानी झोली भरती 102
खोल खज़ाना माल लुटाती भक्तो के भण्डार है भरती
सेवक इतना पाते उनकी झोली भी छोटी पड़ जाती 103
अपने भक्तो की रखवाली करती है माँ भंवरा वाली
दुष्टो को ये मार भगाये भक्तो का हित करने वाली 104
माँ का नाम बड़ा ही प्यारा दुःखडो से मिलता छुटकारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 105
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
षष्ठम् अध्याय जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
सर्वसुहागण तुझे मनाती हाथो से माँ तुझे सजाती
लाल चुनड़ी चूड़ा मेहँदी रोली मोली भेंट चढ़ाती 106
लाल फूल के गजरे सोहे सोणा सा सिणगार भवानी
सांची है सकलाई तेरी साँचा है दरबार भवानी 107
जीण जीण जो नाम पुकारे उसको तू संकट से उबारे
ह्रदय बीच बसाकर देखो हो जायेंगे वारे न्यारे 108
सभा मंड में मात विराजे सिर सोने का छत्र साजे
लाल ध्वजा तेरे मंड पे फहरे सात कलश तेरे शिखर पे साजे 109
कानो में तेरे कुण्डल साजे शीश बोरला सजे सुहाना
हाथो में त्रिशूल भवानी गल मोतियन का हार सुहाना 110
हाथो मेंहन्दी रची सुरंगी माँ का मुखड़ा दम दम दमके
लाल चुनरियाँ चमचम चमके नथली में माँ हिरा चमके 111
सिन्दूरी माँ तिलक लगा है छप्पन भोग का थाल सजा है
महक रहा दरबार तुम्हारा इत्र का अंबार लगा है 112
सिंहासन पर आप विराजो सेवक चँवर ढुलाये माता
देख देख श्रंगार तुम्हारा सेवक लेत बुलाये माता 113
लाल जवा की माला सोहे हीरा पन्ना दम-दम दमके
हार बासीको गले में सोहे माथे पे तेरे बिन्दिया चमके 114
ढोल नगाड़े दर पे बाजे भक्तो की माँ भीड़ बड़ी है
दोनों हाथ पसारे मैया दुनिया तेरे द्वारा खड़ी है 115
मुखड़े पे है तेज निराला सिंह पीठ पर आप विराजे
नैनो से तेरे ममता बरसे दर्शन से माँ संकट भाजे 116
अदभुत है सिणगार भवानी प्यारा सा है निखार भवानी
पल भर भी आँखे ना हटती सेवक रहे निहार भवानी 117
सज के मैया यूँ बैठी है मानो जेसे कोई शक्ति
भक्त करे अरदास आपसे दे दो माँ हम सबको भक्ति 118
तेरी ममता हम बच्चों को यूँ ही हर दम मिलती जाये
जन्म जन्म तक जीण भवानी तेरी कृपा हम सब पाये 119
सुन्दर ये श्रृंगार तुम्हारा हम सबको लगता माँ प्यारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 120
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
सप्तम् अध्याय जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट हा हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
पूजन थाल सजा कर माता आज आरती तेरी उतारूँ
द्वार खड़ा माँ तेरा बालक सोणी मूरत तेरी निहारूँ 121
मैया तुझको तिलक लगा कर हाथो में चूड़ा पहनाऊँ
लाल सुरंगी मेंहन्दी तेरे हाथो में माँ आज रचाऊँ 122
जवा कुसूम के फूलो से माँ प्यारा सा इक हार बनाऊँ
लाल चुनरिया तारो वाली माता तुझको आज उढ़ाऊँ 123
भाव भरी ये लाल चुनरिया अम्बर से सजकर है आई
सूरज चाँद सितारों की माँ किरणें इसमें आन समाई 124
ब्रम्हा जी ने बड़े चाव से बुनकर के इक पोत बनाया
विष्णु जी ने बड़े प्रेम से निज हाथो से इसे सजाया 125
श्री गणेश को लिए साथ में भोले पार्वती भी आये
आज जरा इसे मान से ओढ़ो इन्दर देव गण सभी मनाये 126
लम्पी लूमा लगी सुरंगी भाव भरी ये चुनड़ ओढ़ो
मुझको अपना जान भवानी माँ बेटे का रिश्ता जोड़ो 127
इन्द्र धनुष के साथ रंगों से रंगी चुनरिया लाये माता
बड़े प्रेम से सारे सेवक तुझको आज उढाये माता 128
सबका तूने मान बढ़ाया मुझको ना बिसराना माता
सरण तुम्हारी आन पड़ा हूँ यूँ ही ना ठुकराना माता 129
तेरी कृपा जिस पर होवे चमके है किस्मत का तारा
जब जब तेरा नाम पुकारा तूने आकर दिया सहारा 130
ममता की माँ शीतल छाया आज मुझे भी दे देना तूम
चरणों में दे मुझे ठिकाना सरण तुम्हारी ले लेना तुम 131
ख़ाली झोली लेकर माता द्वार तुम्हारे बेटा आया
पलक झपकते भर जायेगी जान गया में तेरी माया 132
भाव भरे ना भक्ति आई मेरे पापी मन के अन्दर
दया करो बन जाये इसमें तेरा प्यारा सा इक मंदिर 133
पूण्य आत्माओं के घर में रहती हो तुम सदा भवानी
तेरी कृपा से ही जग सारा रहता है खुशहाल भवानी 134
मंगल करणी हे दुःख हरणी हम को है आधार तुम्हारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 135
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
अष्टम् अघ्याय जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
नमो नमो हे जीण भवानी नमो नमो हे अंबे रानी
तीनो लोकों में ना दूजा मैया तेरा कोई सानी 136
मन मोहक है रूप तुम्हारा साँचा है माँ नाम तुम्हारा
जीण धाम की हे महारानी सिद्धपीठ है धाम तुम्हारा 137
अन्नपूर्णा अन्न की दाता धन वैभव की लक्ष्मी माता
ज्ञान बुद्दि का रूप शारदे चण्डी रूप में दुर्गा माता 138
हिंगलाज में आप भवानी महिमा तेरी किसने जानी
सिंह सवारी करती माता तुमसा दूजा कोई ना दानी 139
नमन् है तुमको माँ बाह्यणी नमन है तुमको है रुद्राणी
शत् शत् नमन हमारा तुमको नमन है तुमको जग कल्याणी 140
सुख सम्पति की तुम हो दाता नमस्कार हे भाग्य विधाता
बल बुद्दी विधा की देवी मातृ रूप में तुझे मनाता 141
कृपा करो हे मात भवानी खोल मेरी तकदीर का ताला
शरणागत् को तूने माता सारी विपदाओं से टाला 142
ऐसा दो वरदान भवानी जन्म जन्म में तुझको पाऊँ
जब तक सांस चले ये मेरी मैया तेरी महिमा गाऊँ 143
जग की माया मुझे सताये रह रह करके मुझे डराये
तेरा ध्यान धरूँ जब माता आकर ये बाधा पहुँचाये 144
मुझको माँ दुःखडो ने घेरा तुम बिन कौन यहाँ पर मेरा
तुम ही आकर राह दिखाओ छाया है घनघोर अँधेरा 145
मैया मैया आज पुकारूँ सुनले करुण पुकार भवानी
आजा मुझको गले लगाले थोडा सा दे प्यार भवानी 146
माना बिल्कुल नालायक हूँ फिर भी में हूँ लाल तुम्हारा
बिन तेरे अब कौन सुने माँ आजा सुनले हाल हमारा 147
सेवा पूजा कुछ ना जाने छोटा सा ये दास भवानी
भूल चूक की माफ़ी देना तुमसे है अरदास भवानी 148
धन दौलत ना पास में मेरे दो आँसू में भेंट में लाया
मन मंदिर में मूरत तेरी आज बसा कर दौड़ा आया 149
चरणों में बस बेठा रहूँ मेंमन में मेरे आस यही है
निर्मोही दुनिया की मुझको अब कुछ परवाह नहीं है 150
अपनों ने ही मुझे सताया गैरो ने माँ खूब रुलाया
आखिर थक कर जीण भवानी शरण तिहारी लेने आया 151
पाप की गठरी सिर पर लादे भटक रहा हूँ जग जगंल में
जूझ रहा पतवार लिये माँ मोह माया के इस दंगल में 152
जितने तारे नील गगन में चाहे उतने शत्रु होवे
तेरी दया हो जिस पर माता उसका बाल ने बाँका होवे 153
बावन भेरों चौसठ योगिनी आगे भैरू नृत्य करत है
बह्मा विष्णु शिव शंकर माँ हर पल तेरा ध्यान धरत है 154
तू ही काली तू जगदम्बा ये सृष्टि है खेल तुम्हारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 155
दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम
चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
नवम् अध्याय
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा
नाम जपे माँ खुश हो जावे संकट हर लेती है सारा
कुल की देवी जीण भवानी मन इच्छा माँ पूरी करना
दास खड़ा अरदास गुजारे मान हमारा तुम रख लेना 156
ऊँचे आसन आप विराजो गंगा जल से चरण धुलाऊँ
रुखा सुखा पास जो मेरे भोग लगा कर भोग में पाऊ 157
धन दौलत ना पास में मेरे सर्दा चाहे जितनी लेना
मन में मेरे भाव भरे है आकर माता तुम पढ़ लेना 158
डूब न जाये नैया मेरी आकर तुम पतवार सम्भालो
बीच भँवर में नाव हमारी आकर के माँ इसे निकालो 159
माना मैया में पापी हूँ फिर भी मेरी विनती सुनना
भूल चूक जो होवे मुझसे उसकी लाज सदा तुम रखना 160
अपनी शरण में लेना मैया मुझको ना बिसराना मैया
तेरे बिना है जीण भवानी नहीं ठिकाना दूजा मैया 161
आदिशक्ति हे जीण भवानी सारा जग माँ तुझको ध्याये
शिव शंकर भी आदि देव की तुझसे ही माँ पदवी पाये 162
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे शिव शंकर तेरा ध्यान धरे है
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरतीचँवर कुबेर ढुलाय रहे है 163
तुम ही हो सर्वस्व हे जननी सारी दुनिया तेरी माया
चारों धाम तेरे चरणों में तुझमे ह बह्ममंड समाया 164
माना मै नालायक हूँ माँ त्याग ना देना मुझको माता
पूत कपूत तो हो सकता है माता हुई ना कभी कुमाता 165
तेरे जैसी मैया पाकर बालक तेरी शरण में आया
आँचल में माँ आज छिपाले सारी दौलत आज मै पाया 166
जिस घर में हो कृपा तुम्हारी उस घर कोई कमी ना आवे
युगों युगों तक जीण भवानी वो प्राणी जग से तर जावे 167
जीण नाम का जाप करू तो जीवन में मधुपाक बनाऊँ
ऐसा दो वरदान भवानी हर पल तेरा ही गुण गाऊँ 168
सुदी अष्टमी – नवमी को माँ जो कोई लेता ज्योत तुम्हारी
प्रगट होय कर मात भवानी मन इच्छा फल तू दे जाती है 169
रोज नियम से पाठ करे जो उसका पल में कष्ट टलेगा
ग्यारह पाठ करे जो कोई मन इच्छा फल उसे मिलेगा 170
यह शत पाठ करे जो प्राणी भव सागर से तर जायेगा
जीण भवानी महर करेगी दामन उसका भर जायेगा 171
स्नान ध्यान कर धुप दीप धर जो ये मंगल पाठ करेगा
हर्ष कहे माँ तेरी दया से उस नर का भण्डार भरेगा 172
दुःख दारिद्र पास नहीं आते शक्ति पाठ जहाँ हो तेरा
जिस घर में माँ आप विराजो करती लक्ष्मी वहाँ बसेरा 173
कलम विराजी मात शारदा मन बुद्धि को चिन्तन दीन्हा
मंगल पाठ भवानी तेरे हर्ष भक्त ने पूरा कीन्हा 174
मंगल पाठ करे जो कोई निषचय हो जावे भव पारा
जीण जीण भज बारम्बारा हर संकट का हो निस्तारा 175


दोहा
सिद्धपीठ काजल शिखर बना जीण का धाम
नित की परचा देत है पूरण करती काम


चौपाई
मंगल भवन अमंगल हारी जीण नाम होता हितकारी
कौन सो संकट है जग माँहि जो मेरी मैया मेट न पाई


दोहा
मैया जीण की ज्योत ले करेगा जो ये पाठ
भंवरा वाली की कृपा से सदा रहेंगे ठाठ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ
जय जय भंवरा वाली माँ
जय जय जीण माँ

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