जय शिव शंकर औढरदानी | Jai shiv shankar odhardan :->पंच तत्व से ऊपर जो विशेष है उसी महेश का वर्णन करते पेश हैं सदा शिव की जय हो !!
जय शिव शंकर औढरदानी | Jai shiv shankar odhardan
दोहा
अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार।
बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार** 1**
आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति-मुक्ति-दातार।
करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार** 2**
पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार।
सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार** 3**
पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार।
ढरौ तुरंत स्वभाववश, नेक न करौ अबार** 4**
जय शिव शंकर औढरदानी। जय गिरितनया मातु भवानी ** 1 **
सर्वोत्तम योगी योगेश्वर। सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर** 2 **
सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता। उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता** 3 **
पराशक्ति-पति अखिल विश्वपति। परब्रह्म परधाम परमगति** 4 **
सर्वातीत अनन्य सर्वगत। निजस्वरूप महिमा में स्थितरत** 5 **
अंगभूति-भूषित श्मशानचर। भुंजगभूषण चन्द्रमुकुटधर** 6 **
वृष वाहन नंदी गणनायक। अखिल विश्व के भाग्य विधायक** 7 **
व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर। रीछचर्म ओढे गिरिजावर** 8 **
कर त्रिशूल डमरूवर राजत। अभय वरद मुद्रा शुभ साजत** 9 **
तनु कर्पूर-गौर उज्ज्वलतम। पिंगल जटाजूट सिर उत्तम** 10 **
भाल त्रिपुण्ड मुण्डमालाधर। गल रूद्राक्ष-माल शोभाकर** 11 **
विधि-हरी-रूद्र त्रिविध वपुधारी। बने सृजन-पालन-लयकारी** 12 **
तुम हो नित्य दया के सागर। आशुतोष आनन्द-उजागर** 13 **
अति दयालु भोले भण्डारी। अग-जग सब के मंगलकारी** 14 **
सती-पार्वती के प्राणेश्वर। स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर** 15 **
हरि-हर एक रूप गुणशीला। करत स्वामि-सेवक की लीला** 16 **
रहते दोउ पूजत पूजवावत। पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत** 17 **
मारूति बन हरि-सेवा कीन्ही। रामेश्वर बन सेवा लीन्ही** 18 **
जग-हित घोर हलाहल पीकर। बने सदाशिव नीलकण्ठ वर** 19 **
असुरासुर शुचि वरद शुभंकर। असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर** 20 **
‘नमः शिवायः’ मंत्र पंचाक्षर। जपत मिटत सब क्लेश भयंकर** 21 **
जो नर-नारि रटत शिव-शिव नित। तिनको शिव अति करत परमहित** 22 **
श्रीकृष्ण तप कीन्हो भारी। भये प्रसन्न वर दियो पुरारी** 23 **
अर्जुन संग लड़े किरात बन। दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन** 24 **
भक्तन के सब कष्ट निवारे। दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे** 25 **
शंखचूड़ जालंधर मारे। दैत्य असंख्य प्राण हर तारे** 26 **
अन्धक को गणपति पद दीन्हों। शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों** 27 **
तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं। बाणासुर गणपति गति कीन्हीं** 28 **
अष्टमुर्ति पंचानन चिन्मय। द्वादश ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्मय** 29 **
भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा। अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा** 30 **
काशी मरत जंतु अवलोकी। देत मुक्ति पद करत अशोकी** 31 **
भक्त भगीरथ की रूचि राखी। जटा बसी गंगा सुर साखी** 32 **
रूरू अगस्तय उपमन्यू ज्ञानी। ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी** 33 **
शिवरहस्य शिवज्ञान प्रचारक। शिवहिं परमप्रिय लोकोद्धारक** 34 **
इनके शुभ सुमिरनतें शंकर। देत मुदित हृै अति दुर्लभ वर** 35 **
अति उदार करूणावरूणालय। हरण दैन्य-दारिद्र्य-दुःख-भय** 36 **
तुम्हरो भजन परम हितकारी। विप्र शूद्र सब ही अधिकारी** 37 **
बालक वृद्ध नारि-नर ध्यावहिं। ते अलभ्य शिवपद को पावहिं** 38 **
भेदशून्य तुम सब के स्वामी। सहज-सुहृद सेवक अनुगामी** 39 **
जो जन शरण तुम्हारी आवण। सकल दुरित तत्काल नशावत** 40 **
दोहा
बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ जाति कछु, सब विधि करौ संभार1
तुम्हरो शील स्वाभव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नही कुभाग्य जन कोय2
दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करौ पाप सब क्षार3
कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करौ पवित्र।
राखौ पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र4