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श्री लक्ष्मी स्तुति | Shri lakshmi stuti

  • Stotram

श्री लक्ष्मी स्तुति | Shri lakshmi stuti :-> लक्ष्मी स्तुति धन और समृद्धि की हिंदू देवी लक्ष्मी के लिए एक प्रार्थना है। माना जाता है कि यह प्रार्थना इंद्र द्वारा लिखी गई थी, यह प्रार्थना सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में पाई जाती है। एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण भगवान इंद्र ने अपनी सारी संपत्ति खो दी थी। फिर उन्होंने धन की देवी महालक्ष्मी को संबोधित यह प्रार्थना पढ़ी। वह उसके सामने प्रकट हुई और उसे उसकी सारी संपत्ति वापस दे दी।

श्री लक्ष्मी स्तुति | Shri lakshmi stuti

आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि
यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे1

सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि
पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे2

विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि
विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे3

धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि
धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे4

धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते
धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे5

मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि
प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे6

गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वदेव स्वरूपिणि
अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे7

धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स्वरूपिणि
वीर्यं देहि बलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे8

जय लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व कार्य जयप्रदे
जयं देहि शुभं देहि सर्व कामांश्च देहि मे9

भाग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सौमाङ्गल्य विवर्धिनि
भाग्यं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे10

कीर्ति लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु विष्णुवक्ष स्थल स्थिते
कीर्तिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे11

आरोग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व रोग निवारणि
आयुर्देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे12

सिद्ध लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व सिद्धि प्रदायिनि
सिद्धिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे13

सौन्दर्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वालङ्कार शोभिते
रूपं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे14

साम्राज्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि
मोक्षं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे15

मङ्गले मङ्गलाधारे माङ्गल्ये मङ्गल प्रदे
मङ्गलार्थं मङ्गलेशि माङ्गल्यं देहि मे सदा16

सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्रयम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते**17

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