श्री सेतुबंध रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग | Shree rameshwar jyotivling :->इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी ने की थी। केबीसी में यह कथा कही जाती है जब भगवान श्री रामचंद्र लंकापुरी चढ़ाई करने के लिए जा रहे थे| तब इस स्थान पर उन्होंने समुद्र तट की बालिका से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था।
श्री सेतुबंध रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग | Shree rameshwar jyotivling
ऐसा भी कहा जाता है कि स्थान पर ठहर कर भगवान राम जल पी रहे थे| कि आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना ही जल पीते हो। इस गाने को सुनकर भगवान श्रीराम ने बालू का से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की तथा भगवान शिव जी से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर मांगा। उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह भ्रम भगवान श्रीराम को दे दिया। कौन ने लोक कल्याण ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां निवास करने की सबकी प्रार्थना विश्व विकार कर ली| तभी से ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान है।
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक दूसरी कथा इस प्रकार कही जाती है। जय भगवान श्री राम रावण का वध करके लौट रहे थे तब उन्होंने अपना पहला पड़ाव समुद्र के इस पार गंधमादन पर्वत पर डाला था। महा भाव से ऋषि और मुनि गण के दर्शन के लिए उनके पास आए।
सभी का आदर सत्कार करते हुए भगवान राम ने उनसे कहा कि पुलत्सय के वंशज रावण का वध करने के कारण मुझ पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया है। आप लोग मुझे इस से निवृत का कोई उपाय बताइए। यह बात सुनकर वहां उपस्थित सारे ऋषि यों ने मुनियों ने एक स्वर से कहा कि आप यहां जो शिवलिंग की स्थापना कीजिए इससे आप ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पा जाएंगे।
भगवान श्रीराम ने उनकी यह बात स्वीकार कर हनुमान जी को कैलाश पर्वत पर जाकर वहां से शिवलिंग लाने को आदेश दिया हनुमान जी तत्काल ही वहां जा पहुंचे किंतु उन्हें उस समय वहां भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए आधा व उनका दर्शन प्राप्त करने के लिए वहीं बैठकर तपस्या करने लगे। कुछ काल पश्चात शिव जी के दर्शन प्राप्त कर हनुमान जी शिवलिंग लेकर लौटे किंतु तब तक शुभ मुहूर्त भी जाने की आशंका से यहां सीता जी द्वारा लिंग स्थापना कराया जा चुका था।
हनुमान जी को यह सब देख कर बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान श्री राम से कह सुनाई। भगवान ने पहले ही लिंग स्थापित किया जाने का कारण हनुमान जी को बताते हुए कहा कि यदि तुम चाहो तो इस लिंक को यहां से उखाड़ कर हटा दो। हनुमान जी अत्यंत प्रसन्न होकर मुस्लिम को खाने लगे किंतु बहुत प्रयत्न करने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ।
अंत में उन्होंने उस शिवलिंग को अपनी पूंछ से लपेटकर उखाड़ने का प्रथम किया। फिर भी वहां ज्यों का त्यों एडिंग बना रहा। उलटे हनुमान जी ही धक्का खा कर एक कोस दूर मूर्छित होकर जा गिरे। उनके शरीर में रक्त बहने लगा। यह देखकर सभी लोग अत्यंत व्याकुल हो उठे। माता सीता जी पुत्र से भी प्यारे अपने हनुमान जी के शरीर पर हाथ करती हुई विलाप करने लगी।
मुझसे दूर होने पर हनुमान जी भगवान श्री राम के परम ब्रह्म के रूप में सामने देखा। वाने वाने शंकर जी की वही बताते हुए उनका प्रबोध किया। हनुमान जी द्वारा लाए गए लिंग की स्थापना भी वहीं पास में करवा दी। कल पुराण में इसकी महिमा विस्तार से वर्णित है।