हमारे वैदिक शास्त्रों और ऋषियों ने सदैव सत्संग करने का निर्देश क्यों दिया था ?रामायण में भी कहा है “बिनु सत्संग विवेक न होइ “सके पीछे कारण जय है |
सत्संग क्यों करे | Satsang kyu kare
सत्संग का अर्थ –“है ” का संग ,अर्थात जो उपस्तिथ है ,उसका संग |सत्संग के लिए आबश्यक कार्य को पूरा करना और अनाबश्यक कार्य का तियाग करना अनिवार्य है |श्रमरहित होने पर जो आगे पीछे का चिंतन होता है | कैसे अन्य चिंतन से व्यर्थ -चिंतन का नाश नहीं होता |अचिन्त्यः हो जाना चाहिए |साधक को “करने ” और “होने ” से असंग हो जाने और जो “है” उसमे अबिचल आस्था हो जाएगी |
वस्तु ,वियक्ति ,अवस्था ,परिस्तिथि आदि का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है |इनकी ममता व कामना बनाए रखना भरी भूल है |इनसे सनंबंध जोड़ने का अर्थ — जो है उससे विमुख होना |