अपरा एकादशी व्रत कथा| Apra Ekadashi vrat katha:—कलयुग में एक मात्र भवसागर से पार उतरने का सहारा है जो की एकादशी व्रत है जो व्यक्ति इसको श्रद्धा सहित व्रत करते है वह भगवन श्री नारायण के कृपा के पात्र बनते है | इस साल 06 /06 /2021 को अपरा एकादशी है जिसकी कथा आगे लिखी है |
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अपरा एकादशी व्रत कथा | Apra Ekadashi vrat katha
युधिस्टर बोले–हे मधुसूदन |जेष्ठ| मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है|में उसका माहात्म्य सुन्ना चाहता हु | श्री कृष्ण बोले – हे राजन | तुमने संसार के हित के लिए बहुत सुंदर प्रशन किया |यह अपरा एकादशी बहुत पुण्य देने वाली है |
बड़े बड़े पापो को नष्ट करने वाली अथवा अनंत फल देने वाली है | जोह अपरा का व्रत करते है वह संसार में प्रसिद्ध हो जाते है |
ब्रह्महत्या ,गोत्री की हिंसा और गरब हत्या ,दुसरो की निंदा ,परस्त्री गमन यह सब पाप अपरा का व्रत करने से नष्ट हो जाते है झूठी गवाही देने वाले,झूठी प्रसंसा करने वाले,झूठ बोलना वाले, मिथ्या वैद पति ब्राह्मण और ढोंग रचने वाला ठग ,ज्योतिष ,वैद्य,कपटी यह सब नरकगामी होते है |
परन्तु राजन अपरा का सेवन करने से यह पाप से चुत जाते है | जोह क्षत्रिय युद्ध में से भाग जाता है वह घोर पाप में पड़ता है हे राजन ,अपरा का सेवन करने से वह स्वर्ग को जाता है |जोह शिष्य विद्या ग्रहण करके अपने गुरु की निंदा करते है |
यह बड़े पटक से युक्त होकर नर्क को जाते है अपरा क सेवन करने से वह व्यक्ति साधगति को प्राप्त होता है
1.अपरा व्रत कथा की महिमा:
हे राजन अब में अपरा की महिमा कहता हु |उसे सुनो कार्तिक की पूर्णिमा को तीनो पुष्कर में स्नान करने से ,कशी में शिवरात्रि का व्रत करने से , गया में पिंडदान करने से, सिंग राशि में ब्ररस्पति में गोमती में स्नान करने ,कुम्ब में केदारनाथ के दर्शन करने से , बद्रिकाश्रम की यात्रा और और उस तीर्थ का सेवन करने से ,सूर्य ग्रहण में ,कुरुक्षेत्र में ,हठी ,घोडा और स्वर्ण का दान करने से और दक्ष में स्वर्ण का दान करने से जो फल मिलता है
वह फल मनुष्य को अपरा का व्रत करने से मिलता है यह पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी और पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान है |पापरूपी अंनधकार के लिए सूर्य और पापरूपी हिरन के लिए सिंग के समान है |
हे राजन अब में अपरा की महिमा कहता हु |उसे सुनो कार्तिक की पूर्णिमा को तीनो पुष्कर में स्नान करने से ,कशी में शिवरात्रि का व्रत करने से , गया में पिंडदान करने से, सिंग राशि में ब्ररस्पति में गोमती में स्नान करने ,कुम्ब में केदारनाथ के दर्शन करने से , बद्रिकाश्रम की यात्रा और और उस तीर्थ का सेवन करने से ,सूर्य ग्रहण में ,कुरुक्षेत्र में ,हठी ,घोडा और स्वर्ण का दान करने से और दक्ष में स्वर्ण का दान करने से जो फल मिलता है
वह फल मनुष्य को अपरा का व्रत करने से मिलता है यह पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी और पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान है |पापरूपी अंनधकार के लिए सूर्य और पापरूपी हिरन के लिए सिंग के समान है |
2.सम्पूर्ण माहात्म्य:-
हे राजन, पाप से दरेय मनुष्य को अपरा एकादशी का व्रत करना चाहिए |जो एकादशी व्रत नहीं करते वह मनुष्य जल में बबूला के समान है| और जानवरो में भुनगे के समान है |वह बस मरने के लिए संसार में जनम लेता है
अपरा का व्रत और बामन देव जी की पूजा करने मनुष्य सब पापो से छूटकर विष्णुलोक को जाता है |हे राजन |संसार के हित के लिए यह माहात्म्य मैंने तुमसे कहा है इसका पड़ने ,सुनने से सब पाप छूट जाते है |
अपरा एकादशी व्रत कथा| Apra Ekadashi vrat katha
3.अपरा एकादशी व्रत विधि :
फलाहार : इस दिन ककड़ी का सागार लिए जाता है |