Skip to content
Home » पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima vrat katha

पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima vrat katha

पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima vrat katha :->पूर्णिमा व्रत कथा हिंदू धर्म में विभिन्न तिथियों पर मनाए जाने वाले व्रतों में से एक है। यह व्रत पूर्णिमा तिथियों (पूनम) के दिन मनाया जाता है और इसके प्रति वर्षीय अवसरों पर विशेष धार्मिक कथाएँ होती हैं। यह कथाएँ व्रत की महत्वपूर्णता को समझाने और व्रती व्यक्ति को आध्यात्मिक अर्थ में उनकी प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखती हैं।

पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima vrat katha

यहां एक सामान्य पूर्णिमा व्रत कथा दी जा रही है:

किसी समय की बात है, एक गाँव में एक ब्राह्मण बसते थे। वह ब्राह्मण धर्मिक और साधु व्रती थे। एक बार उन्होंने गुरुवार की पूर्णिमा के दिन का व्रत आरम्भ किया। उन्होंने पूजा के बाद भगवान की आराधना की और अन्न की भिक्षा जुटाकर दी।

एक दिन ब्राह्मण गाँव के एक संतानी व्यक्ति के पास गए और उनसे भिक्षा मांगने लगे। वह व्यक्ति उन्हें खाने का कुछ नहीं दिया और उन्हें अपमानित करके दूसरे दिशा में भेज दिया।

ब्राह्मण ने दुःखित होकर अपने व्रती भक्तों के पास आए और उन्हें यह सब सुनाया। भक्तों ने ब्राह्मण को सांत्वना दी और उनसे कहा कि आपके पुन्य के बल पर हम आपके लिए भोजन बना कर लाएंगे।

उसी दिन ब्राह्मण के व्रती भक्तों ने मिलकर भगवान के समक्ष भोजन बनाया और ब्राह्मण के साथ उन्हें खिलाया। भगवान को इस प्रकार की भक्ति और सेवा देखकर खुशी हुई और उन्होंने ब्राह्मण को आशीर्वाद दिया।

इस कथा से सिख: यह दिखाता है कि पूर्णिमा व्रत का महत्व है और भगवान की भक्ति और सेवा का महत्वपूर्ण अंश है। इसके साथ ही, यह बताता है कि किसी भी परिस्थिति में हमें दूसरों की सेवा करना और दया करना बहुत महत्वपूर्ण है।

कृपया ध्यान दें कि यह कथा एक उदाहरण है और व्रत कथाएँ विभिन्न स्थानों और संप्रदायों में भिन्न हो सकती हैं।

Must read Below

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!