Source:-https://bhajansimran.com/shiv-chalisa/ श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ --भगवान गणेश की महिमा, देवी गिरिजा के दिव्य पुत्र, सभी शुभता और बुद्धिमत्ता का कारण। अयोध्या दास (इन छंदों की रचनाकार) विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि सभी को निडर होने का वरदान प्राप्त है जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ --हे गिरिजा पति हे, दीन हीन पर दया बरसाने वाले भगवान शिव आपकी जय हो, आप सदा संतो के प्रतिपालक रहे हैं। आपके मस्तक पर छोटा सा चंद्रमा शोभायमान है, आपने कानों में नागफनी के कुंडल डाल रखें हैं। अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥ --आपकी जटाओं से ही गंगा बहती है, आपके गले में मुंडमाल है। बाघ की खाल के वस्त्र भी आपके तन पर जंच रहे हैं। आपकी छवि को देखकर नाग भी आकर्षित होते हैं। मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ --माता मैनावंती की दुलारी अर्थात माता पार्वती जी आपके बांये अंग में हैं, उनकी छवि भी अलग से मन को हर्षित करती है, तात्पर्य है कि आपकी पत्नी के रुप में माता पार्वती भी पूजनीय हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाता है। आपने हमेशा शत्रुओं का नाश किया है। नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ --नंदी और श्री गणेश के साथ भगवान शिव उतने ही सुंदर दिखाई देते हैं एक महासागर के बीच में दो कमल .poet और दार्शनिकों का वर्णन नहीं किया जा सकता भगवान कार्तिकेय का अद्भुत स्वरूप और गहरे रंग के गण (परिचारक)। देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ --हे भगवन, देवताओं ने जब भी आपको पुकारा है, तुरंत आपने उनके दुखों का निवारण किया। तारक जैसे राक्षस के उत्पात से परेशान देवताओं ने जब आपकी शरण ली, आपकी गुहार लगाई। तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ --हे प्रभू आपने तुरंत तरकासुर को मारने के लिए षडानन को भेजा। आपने ही जलंधर नामक असुर का संहार किया। आपके कल्याणकारी यश को पूरा संसार जानता है। त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ --हे शिव शंकर भोलेनाथ आपने ही त्रिपुरासुर के साथ युद्ध कर उनका संहार किया व सब पर अपनी कृपा की। हे भगवन भागीरथ के तप से प्रसन्न हो कर उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने की उनकी प्रतिज्ञा को आपने पूरा किया।] दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ --हे प्रभू आपके समान दानी और कोई नहीं है, सेवक आपकी सदा से प्रार्थना करते आए हैं। हे प्रभु आपका भेद सिर्फ आप ही जानते हैं, क्योंकि आप अनादि काल से विद्यमान हैं, आपके बारे में वर्णन नहीं किया जा सकता है, आप अकथ हैं। आपकी महिमा का गान करने में तो वेद भी समर्थ नहीं हैं। प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥ कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ --हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ। पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥ --जब भगवान राम ने आपकी पूजा की, वह पर विजयी हो गया राक्षसों का राजा, रावण। कब भगवान राम की पूजा करने की कामना की एक हज़ार लोटू के साथ उन्हें फूल, दिव्य माँ , की भक्ति का परीक्षण करने के लिए श्री राम ने सारे फूल छुपा दिए आपके निवेदन पर। एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥ ---हे नीलकंठ आपकी पूजा करके ही भगवान श्री रामचंद्र लंका को जीत कर उसे विभीषण को सौंपने में कामयाब हुए। इतना ही नहीं जब श्री राम मां शक्ति की पूजा कर रहे थे और सेवा में कमल अर्पण कर रहे थे, तो आपके ईशारे पर ही देवी ने उनकी परीक्षा लेते हुए एक कमल को छुपा लिया। जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥ --हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥ --हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ। मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥0 --हे प्रभु वैसे तो जगत के नातों में माता-पिता, भाई-बंधु, नाते-रिश्तेदार सब होते हैं, लेकिन विपदा पड़ने पर कोई भी साथ नहीं देता। हे स्वामी, बस आपकी ही आस है, आकर मेरे संकटों को हर लो। धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥ अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥ --आपने सदा निर्धन को धन दिया है, जिसने जैसा फल चाहा, आपकी भक्ति से वैसा फल प्राप्त किया है। हम आपकी स्तुति, आपकी प्रार्थना किस विधि से करें अर्थात हम अज्ञानी है प्रभु, अगर आपकी पूजा करने में कोई चूक हुई हो तो हे स्वामी, हमें क्षमा कर देना। शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥ --हे शिव शंकर आप तो संकटों का नाश करने वाले हो, भक्तों का कल्याण व बाधाओं को दूर करने वाले हो योगी यति ऋषि मुनि सभी आपका ध्यान लगाते हैं। शारद नारद सभी आपको शीश नवाते हैं। नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥ जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥ --हे भोलेनाथ आपको नमन है। जिसका ब्रह्मा आदि देवता भी भेद न जान सके, हे शिव आपकी जय हो। जो भी इस पाठ को मन लगाकर करेगा, शिव शम्भु उनकी रक्षा करेंगें, आपकी कृपा उन पर बरसेगी। ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥ पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥ --पवित्र मन से इस पाठ को करने से भगवान शिव कर्ज में डूबे को भी समृद्ध बना देते हैं। यदि कोई संतान हीन हो तो उसकी इच्छा को भी भगवान शिव का प्रसाद निश्चित रुप से मिलता है। पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥ --त्रयोदशी (चंद्रमास का तेरहवां दिन त्रयोदशी कहलाता है, हर चंद्रमास में दो त्रयोदशी आती हैं, एक कृष्ण पक्ष में व एक शुक्ल पक्ष में) को पंडित बुलाकर हवन करवाने, ध्यान करने और व्रत रखने से किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं रहता। धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥ कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु --जो कोई भी धूप, दीप, नैवेद्य चढाकर भगवान शंकर के सामने इस पाठ को सुनाता है, भगवान भोलेनाथ उसके जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश करते हैं। अंतकाल में भगवान शिव के धाम शिवपुर अर्थात स्वर्ग की प्राप्ति होती है, उसे मोक्ष मिलता है। अयोध्यादास को प्रभु आपकी आस है, आप तो सबकुछ जानते हैं, इसलिए हमारे सारे दुख दूर करो भगवन। ॥दोहा॥ नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥ मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥ हर रोज नियम से उठकर प्रात:काल में इस चालीसा का पाठ करें और भगवान भोलेनाथ जो इस जगत के ईश्वर हैं, उनसे अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें। संवत 64 में मंगसिर मास की छठि तिथि और हेमंत ऋतु के समय में भगवान शिव की स्तुति में यह चालीसा लोगों के कल्याण के लिए पूर्ण की गई।] Jai Ganesh Girija Suvan,Mangal Mul Sujan Kahat Ayodhya Das Tum Dev Abhaya Varadan Jai Girija Pati Dinadayala Sada Karat Santan Pratipala Bhala Chandrama Sohat Nike Kanan Kundal Nagaphani Ke Anga Gaur Shira Ganga Bahaye Mundamala Tan Chhara Lagaye Vastra Khala Baghambar Sohain Chhavi Ko Dekha Naga Muni Mohain Maina Matu Ki Havai Dulari Vama Anga Sohat Chhavi Nyari Kara Trishul Sohat Chhavi Bhari Karat Sada Shatrun Chhayakari Nandi Ganesh Sohain Tahan Kaise Sagar Madhya Kamal Hain Jaise Kartik Shyam Aur Ganara-U Ya Chhavi Ko Kahi Jata Na Ka-U Devan Jabahi Jaya Pukara Tabahi Dukha Prabhu Apa Nivara Kiya Upadrav Tarak Bhari Devan Sab Mili Tumahi Juhari Turata Shadanana Apa Pathayau Lava-Ni-Mesh Mahan Mari Girayau Apa Jalandhara Asura Sanhara Suyash Tumhara Vidit Sansara Tripurasur Sana Yudha Macha-I Sabhi Kripakar Lina Bacha-I Kiya Tapahin Bhagiratha Bhari Purva Pratigya Tasu Purari Danin Mahan Tum Sama Kou Nahin Sevak Astuti Karat Sadahin Veda Nam Mahima Tab Ga-I Akatha Anandi Bhed Nahin Pa-I Prakati Udadhi Mantan Men Jvala Jarat Sura-Sur Bhaye Vihala Kinha Daya Tahan Kari Sara-I Nilakantha Tab Nam Kaha-I Pujan Ramchandra Jab Kinha Jiti Ke Lanka Vibhishan Dinhi Sahas Kamal Men Ho Rahe Dhari Kinha Pariksha Tabahin Purari Ek Kamal Prabhu Rakheu Joi Kushal-Nain Pujan Chaha Soi Kathin Bhakti Dekhi Prabhu Shankar Bhaye Prasanna Diye-Ichchhit Var Jai Jai Jai Anant Avinashi Karat Kripa Sabake Ghat Vasi Dushta Sakal Nit Mohin Satavai Bhramat Rahe Mohin Chain Na Avai Trahi-Trahi Main Nath Pukaro Yahi Avasar Mohi Ana Ubaro Lai Trishul Shatrun Ko Maro Sankat Se Mohin Ana Ubaro Mata Pita Bhrata Sab Hoi Sankat Men Puchhat Nahin Koi Svami Ek Hai Asha Tumhari Ava Harahu Aba Sankat Bhari Dhan Nirdhan Ko Deta Sada hi Jo Koi Janche So Phal Pahin Astuti Kehi Vidhi Karai Tumhari Kshamahu Nath Aba Chuka Hamari Shankar Ho Sankat Ke Nishan Vighna Vinashan Mangal Karan Yogi Yati Muni Dhyan Lagavan Sharad Narad Shisha Navavain Namo Namo Jai Namah Shivaya Sura Brahmadik Par Na Paya Jo Yah Patha Karai Man Lai Tapar Hota Hai Shambhu Saha Riniyan Jo Koi Ho Adhikari Patha Karai So Pavan Hari Putra-hin Ichchha Kar Koi Nischaya Shiva Prasad Tehi Hoi Pandit Trayodashi Ko Lavai Dhyan-Purvak Homa Karavai Trayodashi Vrat Kare Hamesha Tan Nahin Take Rahe Kalesha Dhupa Dipa Naivedya Charhavai,Shankar sanmukh paath sunave Janam Janam ke paap nasave,Anta Vasa Shivapur Men Pavai Kahai Ayodhya Asha Tumhari, Jani Sakal Dukha Harahu Hamari Doha:- Nitya Nema kari Pratahi Patha karau Chalis Tum Meri Man Kamana Purna Karahu Jagadish