हजारीबाग के बड़कागांव में अनोखे ढंग से करमा पर्व मनाया जाता है यहां भूत भरनी से करमा पूजा की शुरुआत होती है.|

सत्ता में 7 दिनों तक चलने वाला यह तो हर साल बहुत धूमधाम से मनाया जाता है

इस तोहार की खूबसूरती यह है कि इसमें कुंवारी कुड़ियां विवाहित स्त्री के आने की प्रतीक्षा करते हैं

दोस्तों इस तरह के पहले दिन से ही तीज का जो डाला है उस विसर्जन करने से पहले भूत मरने की जाती है वहां कर्मा का डाला स्थापित करके अगले 7 दिनों तक दिन-रात उसको जलाया जाता है|

गांव के क्षेत्रफल में जितने भी मंदिर आते हैं उन्हें बहुत खूबसूरती से सजाया जाता है|

भूत भरने से तात्पर्य यह है कि जो गांव नगर के कुलदेवता है वह उनके अखाड़े में आते हैं और उनको अपने आशीर्वाद से निहार करते हैं|

यह तोहार हार एक भाईचारा और प्रेम का प्रतीक है|

यह तोहार हर साल बाद भाद्रपद की शुक्ल पक्ष एकादशी वाले दिन मनाया जाता है|

7 दिनों तक रीति रिवाज होने के बाद आखिरी दिन इसकी समाप्ति करी जाती है|

आखिर के दिन में कर्म पौधे की पूजा करी जाती है जिसमें महिलाएं कर्म डाली के पौधे से परिक्रमा करते करते गीत गाते हैं|

कर्मा धर्मा दो भाइयों की वजह से मनाया जाता है यह पर्व|

लोगों का मानना है कि इन दोनों भाइयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी थी|

तभी से यह तोहार  भाई-बहन के बीच में एक स्नेह और प्यार का प्रतीक बन गया| हालांकि यहां पर अनेक कहानियां इस त्यौहार के साथ बताई जाती हैं|