Radha Ashtami vrat katha :->राधा अष्टमी व्रत कथा, जो राधा रानी के जन्म के मौके पर पढ़ी जाती है, हिन्दू धर्म में प्रसिद्ध है। यह कथा राधा रानी के प्रेम और भक्ति के महत्व को समझाने के लिए है और बताती है कि वास्तविक प्रेम कैसे होता है।
Radha Ashtami vrat katha
कथा के अनुसार, एक बार की बात है, वृंदावन में श्रीकृष्ण अपनी प्रिय गोपिका राधा के पास गए थे। श्रीकृष्ण के हाथ में माखन की मटका थी, जिसे वह खाने का प्रयास कर रहे थे। राधा रानी ने खुद को चुपके से पास आने का दृढ़ निर्णय किया।
राधा ने अपने सखियों के साथ श्रीकृष्ण के पास जाकर कहा, “हे श्रीकृष्ण, मुझे भी माखन चाहिए।”
श्रीकृष्ण ने जवाब दिया, “राधे, तुम्हें माखन खाने का अधिकार कैसे हो सकता है? मैं इसे खा रहा हूँ।”
राधा रानी ने नातिनाति चुंबकर श्रीकृष्ण की ओर मुस्कुराते हुए कहा, “हे श्रीकृष्ण, अगर आप माखन की मटका हमें देते हैं तो हम खुद ही अपने हाथों से खा लेंगे, और आपके साथ बाँधने के बदले हम आपका प्रेम और भक्ति खा लेंगे।”
इस पर श्रीकृष्ण ने माखन की मटका राधा रानी के साथ साझा किया और वहाँ से चले गए। राधा रानी ने माखन का स्वाद अपने हाथों से नहीं चखा, बल्कि उन्होंने उस माखन की मटका को आपने हृदय में स्थान दिया और वह भक्ति और प्रेम के साथ भर दिया।
इसी तरह, राधा अष्टमी कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और भक्ति हमारे हृदय में होते हैं और वे अपनी भावनाओं से प्रकट होते हैं। इस व्रत का महत्वपूर्ण सन्देश है कि हमें भगवान के प्रति अपनी निष्ठा और प्यार का आत्मिक अनुभव करना चाहिए।