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मंगलवार त्रयोदशी व्रत कथा | Mangalwar trodashi vrat katha

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मंगलवार त्रयोदशी व्रत कथा | Mangalwar trodashi vrat katha :–>मंगलवार त्रोदशी व्रत कथा सब मनोकामना को पूर्ण करने वाला है। यह नवंबर 2 तिथि धनतेरस वाली दिन आ रही को है

मंगलवार त्रयोदशी व्रत कथा | Mangalwar trodashi vrat katha

सूजी बोले अब मैं मंगल त्रयोदशी  शिव व्रत का विधि विधान कहता हूं मंगलवार का दिन व्याधियों का नाशक है इस व्रत में एक समय वृत्ति को गेहूं और गुड़ का भोजन करना चाहिए।

इस व्रत के करने से मनोज सभी पापों व रोगों से मुक्त हो जाता है इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है और मैं आपको उस बुढ़िया की कथा सुनाता हूं जिसने यह व्रत किया वह मौत को प्राप्त हुई है।

अत्यंत प्राचीन काल की घटना है एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसके मंगलिया नाम का एक पुत्र था वृद्ध को हनुमान जी पर बड़ी श्रद्धा थी। वह प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का व्रत कार रखकर तथा विधि उनका भोग लगाती थी। इसके अलावा मंगलवार को ना तो घर लिपटी थी और ना ही मिट्टी होती थी।

इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उसे काफी दिन बीत गए तो हनुमान जी ने सोचा कि चलो आज इस मृदा की श्रद्धा की परीक्षा करें।

वह साधु का भेष बनाकर उसके घर पर जा पहुंचा पुकारा है कोई हनुमान का भक्त है जो हमारी इच्छा पूरी करें। मृदा ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और पूछा कि महाराज क्या क्या है? साधु बेट धारी हनुमान जी बोले कि मैं बहुत भूखा हूं भोजन खाऊंगा।

तू थोड़ी सी जमीन लिख दे। मृदा बड़ी दुविधा में पड़ गई। हे महाराज लीपने और मिट्टी खोलने के अतिरिक्त जो काम आप कहें वह मैं करने को तैयार हूं। साधु ने तीन बार प्रतीक्षा कराने के बाद कहा तू अपने बेटे को बुला में उसे औंधा लिटा कर उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बना लूंगा।  

वृद्धा ने सुना तो उसके पैरों तले धरती खिसक गई मगर वह वचन हार चुकी थी। उसने मंगलिया को पुकारा  और साधु महाराज के हवाले कर दिया। मगर साधु ऐसे ही मानने वाला ना थे। उन्होंने  वृद्धा के हाथों से मंगलिया को औंधा लिटा कर उसकी पीठ पर आग जल हवाई।

आग जलाकर दुखी मन से वृद्ध अपने घर के अंदर जा घुसी। साधु जब भोजन बना चुका तो उसने वृद्धा को बुलाकर कहा कि वह मंगलिया को पुकारे ताकि वह भी आकर  भोग लगा ले।

फरीदा आंखों में आंसू भर कर कहने लगी कि अब उसका नाम लेकर मेरे हृदय को और ना दुखाओ लेकिन साधु महाराज ना माने तो वृद्धा को भोजन के लिए मंगलिया को पुकारना पड़ा। करने की देर थी कि मंगलिया बाहर से हंसता हुआ घर में दौड़ा आया मंगलिया को जीता जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ। वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी।

साधु महाराज ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। हनुमान जी को अपने आंगन में देखकर वृद्धा को लगा कि जीवन सफल हो गया।

  इसी तरह इस व्रत की कथा का समाप्ति होती है।

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