माँ बृजेश्वरी देवी चालीसा | Brajeswari devi chalisa :->यह चालीसा का निरन्तन रतन करने से बाबा बृजेश्वरी माता के कृपा का पात्र बनता है यह सभी मनोकामना करने को पुराण करने वालाी चालीसा का मैं में खुसी के लहर भरने वाली |
माँ बृजेश्वरी देवी चालीसा | Brajeswari devi chalisa
दोहा|
शक्ति पीठ सूभ कांगड़ा बरिजेस्वरी सूभ धाम |
ब्रह्ममा विष्णु ओर शिव करते तुम्हे प्रडम ||
धीयाँ भारू मा आपका ज्योति अखंध स्वरूप |
टीन लोक के प्राडो को देते छाया धूप ||
चौपाई
जय जय गौरी कांगदे वा;ओ | बरिजेस्वरी आमम्बा महाकाली ||
सती रूप का अंश लिया है | नागरकोट मई वाज़ किया है ||
पिन्दडी रूप सूभ दर्शन भारी | चाँदी आसान छवि है नियरी ||
घंटा धुआनी डुआर बाजे | ढोल दपप डमरू संग गाजे ||
राजा जगत सिंग स्वपन दिखाया | कनखल का इतिहास बताया ||
ममतामयी सब भाव दिखाया | पर्वत वाला छेत्रा बताया ||
सभी देवता पूजन आए | लंगर भेरो आनंद पाए ||
डुआरे सिंग आ पहरा देता | सेर का पाँजा दुख हर लेता ||
मंगल आरती पंडित करते | जिससे विघन सारे है हटते ||
धीयानू भक्त ने सिष चड़ाया | दर्शन देकर सिष मिलाया ||
आस पास मंदिर है प्यारे | जिनके दर्शन भाग्या सवरे ||
डाई ओर है तारा मंडर | भूचाल मई रहा वही पर ||
एसी है मा छवि टिहरी | नागरकोट की विपद निवारी ||
चमत्कार कितने मा दिखाए | भारतवासी पूजन आए ||
राजा मानसिंघ भक्त बनाया | मलिन होकर रूप दिखाया ||
मुगल बादशाह तुमको माता माना | महिमा को टुंरी पहचाना ||
सेना लेकर जब भी आया | भक्ति देख मॅट घबराया ||
राजा त्रिलोक चाँद तुमको धीयया | चोपड़ खेली संग महामाया ||
एक बनिया वायपार को आया | नदी बीच नोका जब लाया ||
लगा डूबने मा चिल्लाया | उसका बेड़ा पार लगाया ||
बेहन आपकी जवाला मई | चिंतापुर्णी भी हरसाई ||
चामुंडा से प्रेम तुम्हारा | सक्चा मई तेरा डुआरा ||
कलयुग मई शक्ति कहलाई | सबने पूजा तू सुखदाई ||
वज्रा रूप धार दुस्त सहारे | पापी शक्ति देखके हारे ||
मर्यादा की रक्षा करती | खड़ाग ओर त्रिशूल हो धरती ||
ध्ृम की लाज बचाने वाली | कही संत हो कही विकराली ||
अंधकार के हटती बदल | तेरा है मा सुकछ का आँचल ||
आसवीं चेट नवरात्रा मनु | सांमुख तेरे दर्शन पौ ||
अंनपूर्णा तुम्ही बनी हो | मेरी मॅट ओर पिता तुम्ही हो ||
डुआरे पीपल भोग लगौ | अन्न आपसे पाकर ख़ौ ||
मेकर सकरांति जब आए | मंदिर की शोभा बाद जाए ||
सारी रात मा का पूवूना होता | सारे जागे, कोई ना सोता ||
जहा छिनन्ह, धीयानू का पियारा | तुमने उसको नही विसरा ||
वेरषा मा जब रुककर होती | वेरषा बूँद धीयानू मच धोती ||
खेटे मई हर्याली छाती | सबके मान को जो हरसती ||