भगवद गीता कृष्ण भगवान के द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का संवाद है, जो महाभारत के युद्ध भूमि पर हुआ था। यह गीता भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले अर्जुन की मोहभंग और आत्मसंयम की स्थिति में हुआ था।

धर्म का पालन: गीता में बताया गया है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। धर्म का पालन करते समय हमें निष्काम कर्म करना चाहिए, यानी कार्यों को फल की आकांक्षा के बिना करना चाहिए।

अहंकार और भक्ति: गीता में भगवान का भक्त वह है जो अहंकार को त्यागकर भगवान की ओर दृढ़ निष्ठा और आत्मसंर्पण के साथ चलता है।

कर्म योग: गीता में कर्म योग का महत्व बताया गया है, जिसमें कार्यों को ईश्वर के लिए करने की सलाह दी जाती है।

1. भक्ति योग: गीता में भक्ति योग का भी महत्व है, जिसमें भगवान के प्रति आदर्श भक्ति करने की सलाह दी जाती है। 2.

ज्ञान योग: गीता में ज्ञान योग के माध्यम से आत्मा के असली स्वरूप को समझाने की सलाह दी गई है।

समर्पण और सेवा: गीता में यह सिखाया गया है कि हमें समर्पण और सेवा के माध्यम से अपने कर्मों को बढ़ावा देना चाहिए।

आत्मा का अमरता: गीता में आत्मा की अमरता के सिद्धांत को बताया गया है, जिसका मतलब है कि आत्मा मरने के बाद भी अमर होती है।

1. संयम और आत्मा निग्रह: गीता में आत्मा पर संयम और आत्मा निग्रह के महत्व को बताया गया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने मन, इंद्रियों और विचारों को नियंत्रित कर सकता है। 2.

समर्पण का मार्ग: भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से समर्पण का मार्ग बताया और यह सिखाया कि हमें अपने कार्यों को ईश्वर के समर्पण के साथ करना चाहिए।

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